भाजपा के उप राष्ट्रपति के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ हैं जुझारू व्यक्तित्व के मालिक, ये हैं प्रमाण

पश्चिम बंगाल में 2021 के बहुचर्चित चुनाव परिणाम के बाद जब राज्यभर में हिंसा भड़की और भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में आगजनी, तोड़फोड़, सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं होने लगीं तब एक समय ऐसा आया था कि हर सुबह राज्यपाल के ट्वीट सुर्ख़ियों बन जाती थीं।

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संसद के दोनों सदनों में भाजपा-नीत एनडीए के सदस्यों की संख्या के मद्देनजर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद पर विजयी होना तय माना जा रहा है।

केंद्र में मंत्री रह चुके धनखड़ के राजनीतिक जीवन का सबसे चर्चित समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनका अब तक का कार्यकाल रहा है। 22 जुलाई 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था। अमूमन राजभवन की यह परंपरा रही थी कि राज्यपाल रबड़ स्टैंप की तरह राज्य सरकार द्वारा भेजी गई फाइलों पर मुहर लगाते थे और स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे कार्यक्रमों में शिरकत करते थे, लेकिन राज्यपाल बनते ही धनखड़ ने इस रीति को पूरी तरह से बदल दिया। धनखड़ जब राज्यपाल बनकर आए तो देशभर में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर विवाद चल रहा था। बंगाल भी हिंसा की आग में जल रहा था और जगह-जगह हिंसक विरोध प्रदर्शन को संभालने के बजाय ममता बनर्जी केंद्र पर हमलावर थीं। तब पहली बार राज्यपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और सीधे जनता से संवाद करते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन किया।

ममता बनर्जी को दी थी सलाह
धनखड़ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सार्वजनिक तौर पर नसीहत दी और कहा कि बंगाल की कानून व्यवस्था को संभालने में आप विफल हैं। आप हिंसक आंदोलनों को हवा देने का भी काम कर रही हैं। राज्यपाल का यह बयान सुर्खियों में छा गया। अमूमन राजभवन के दायरे में सीमित रहने वाले राज्यपालों की लीक से हटकर जब धनखड़ ने ऐसी बातें कीं तो सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस को नागवार गुजरी। दूसरी ओर राज्य के लोगों को यह लगने लगा कि इस बार राजभवन में जो शख्स आए हैं, वह राजसी ठाठबाट में सीमित रहने वाले नहीं बल्कि हमारे आपके बीच उठने-बैठने, बातें सुनने और हमारे लिए खड़े होने वाले हैं। थोड़े दिनों बाद सितंबर के आखिरी सप्ताह में जादवपुर विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्रों ने उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया। कुलपति को कमरे के अंदर बंद कर दिया। उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो जब पहुंचे तो उन्हें भी घेर लिया और तमाम केंद्रीय सुरक्षा के बावजूद उन्हें बाहर नहीं निकलने दे रहे थे। तब भी 70 वर्षीय राज्यपाल राजभवन में आराम फरमाने के बताए बिना देरी किए और बिना संभावित अपमान की परवाह किए जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में जा पहुंचे। छात्रों के उग्र हिंसक प्रदर्शन और तमाम आरोपों के बावजूद उन्होंने केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को अपनी गाड़ी में बैठाया और वापस ले आए। बंगाल के लोगों को इस बात का विश्वास पक्का हो गया कि यह राज्यपाल राजभवन में शांत बैठने वाले नहीं।

कोरोना काल में ममता सरकार के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा
धीरे-धीरे समय का पहिया घूमा और पूरी दुनिया में कोरोना महामारी की दहशत फैल गई। देश के बाकी हिस्सों के साथ बंगाल में भी बेतहाशा मौतें होने लगीं और यहां शवों के साथ बर्बरता का मामला सुर्खियों में छा गया। एक वीडियो सामने आया था जिसमें नगर निगम का कर्मचारी कोरोना से मरने वालों को लोहे की रॉड से जानवरों की तरह घसीटता हुआ गाड़ी में डाल रहा था। इस मामले पर राज्यपाल कहां चुप बैठने वाले थे। उन्होंने ममता सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। क्योंकि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री होने के साथ गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री भी हैं इसलिए राज्य में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को और शवों से इस तरह की बर्बरता को लेकर उन्होंने सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक में कई बयान दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री बनर्जी पर सीधे तौर पर हमला बोलते हुए उन्हें लोगों से माफी मांगने की नसीहत दी। उसी समय 16 जून 2019 को हिन्दुस्थान समाचार के साथ बातचीत में उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया था कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के सोशल मीडिया अकाउंट एक प्राइवेट एजेंसी (प्रशांत किशोर की संस्था आईपैक) चलाती है और वहीं से राज्यपाल धनखड़ पर हमले बोले जाते हैं। तृणमूल कांग्रेस राज्यपाल पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाती रही लेकिन हर बार जब भी बोलने की जरूरत महसूस हुई राज्यपाल ने बोला और खूब बोला।

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विधानसभा चुनाव के बाद प्रशासन से सीधा टकराव
पश्चिम बंगाल में 2021 के बहुचर्चित चुनाव परिणाम के बाद जब राज्यभर में हिंसा भड़की और भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में आगजनी, तोड़फोड़, सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं होने लगीं तब एक समय ऐसा आया था कि हर सुबह राज्यपाल के ट्वीट सुर्ख़ियों बन जाती थीं। इसमें वह राज्य सरकार की कार्यशैली, बंगाल में बिगड़ती कानून व्यवस्था और राज्य के लोगों की बदहाली पर लगातार ममता सरकार से कैफियत तलब करते थे। उनका बोलना सरकार को इतना नागवार गुजरा कि हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाने के लिए विधानसभा में विधेयक पारित किया। हालांकि उसे अभी तक अनुमति नहीं मिली है। धनखड़ ने जब से कार्यभार संभाला उसके बाद राज्य सरकार की ओर से भेजे गए हर एक प्रस्ताव के संवैधानिक पहलुओं को परखा और जहां भी कमी थी, उन्हें वापस राज्य सरकार को लौटाते हुए दुरुस्त करने की नसीहत दी। इसी वजह से कई बार विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी के साथ उनका टकराव भी हुआ। कानून विद होने की वजह से राज्यपाल के रूप में धनखड़ ने कभी हार नहीं मानी और हर मौके पर सरकार को झुकना पड़ा।

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