विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फाइनल में रविवार को भारत के नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर इतिहास रच दिया। टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाले इस भालाफेंक एथलीट ने अमेरिका में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश को रजत पदक दिलाया। वह विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बन गए हैं। उनसे पहले महिलाओं में दिग्गज एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने 2003 में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता था। नीरज ने चौथे राउंड में 88.13 मीटर दूर भाला फेंकर रजत अपने नाम किया। ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने दूसरे राउंड में 90.46 दूर भाला फेंककर स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
नीरज को एक के बाद एक टूर्नामेंट में सफलता यू हीं नहीं मिली। इसके लिए उन्हें त्याग करना पड़ा। अपने लक्ष्य को पाने के लिए नीरज ने लंबे समय तक घरवालों और सोशल मीडिया से दूरी बनाकर रखी। नीरज संयुक्त परिवार में रहते हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा तीन चाचा हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई-बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं।
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उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए पैसों की जरूरत थी। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी कि वह उसे 1.5 लाख रुपये का जेवलिन नहीं दिला सके। पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें अभ्यास के लिए एक जेवलिन लाकर दिया था। उन्होंने इसके बाद खूब मेहनत की।
2016 में सुर्खियों में आए नीरज
वे 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आए। इसके बाद नीरज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। नीरज 2017 में सेना से जुड़े। तब नीरज ने कहा था कि हम किसान हैं। परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है। मेरा परिवार बड़ी मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है। अब राहत की बात है कि मैं अपने प्रशिक्षण को जारी रखने के अलावा अपने परिवार का आर्थिक रूप से समर्थन करने में सक्षम हूं।
नीरज को इसी मैदान पर इस खेल से हुआ प्यार
जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहा और एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोच नहीं था। बावजूद इसके नीरज ने हार नहीं मानी और यूट्यूब चैनल से विशेषज्ञों के टिप्स समझकर अभ्यास किया। अपनी तमाम कमियों को दूर किया। किशोरावस्था में हरियाणा के पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में पसीना बहाने वाले नीरज को इसी मैदान पर इस खेल से प्यार हुआ।