13 जुलाई प्रेमचंद जयंती पर विशेषः सौ साल पहले जो लिखा था, वह आज भी प्रासंगिक है

किसी क्षेत्र में ऊंचाई पर पहुंचे व्यक्तित्व का विरोध करके स्वयं को उससे बड़ा स्थापित करना चाहते हैं। यही हाल आज हिन्दी साहित्य में कथा सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद के साथ हो रहा है।

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बहुत से लोगों की अमूमन एक प्रवृत्ति होती है कि किसी क्षेत्र में ऊंचाई पर पहुंचे व्यक्तित्व का विरोध करके स्वयं को उससे बड़ा स्थापित करना चाहते हैं। यही हाल आज हिन्दी साहित्य में कथा सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद के साथ हो रहा हैं, जो एक दुःखद स्थिति है। उस प्रेमचंद का विरोध हो रहा है जो अपने समय से सौ साल आगे तक देखता हूं। उनकी लिखी गई बातें आज भी प्रासंगिक है जो उन्होंने सौ साल पहले अपने उपन्यासों के माध्यम से कहीं थी।

यह बात मुंशी प्रेमचंद के छोटे भाई महताब राय के नवासे विजय राय ने 31 जुलाई को उनकी जयंती (31जुलाई) पर एक मुलाकात में कही। राय लमही पत्रिका के प्रधान सम्पादक भी हैं। पत्रिका पिछले 15 सालों से लखनऊ से अनवरत प्रकाशित हो रही है। विजय राय इस बात से आहत हो जाते हैं कि जब नए साहित्यकार यह कह देते हैं कि प्रेमचंद ने क्या लिखा ? केवल दो-चार कहानी और उपन्यास ही तो लिखा है। इतना कहकर वह अपनी प्रेमचंद से बराबरी कर लेते हैं।

वे बताते है कि प्रेमचंद ने जो बातें 1901 से 1936 तक अपने जीवन के अंत तक जो लिखी है, वही सारी बातें वर्तमान समय भी दिख रही। प्रासंगिक है। बस उनका रूप बदला है। प्रेमचंद ने किसी व्यक्ति या जाति का विरोध नहीं किया बल्कि उस एक प्रवत्ति का विरोध अपने लेखन में किया था, जबकि लोग उन्होंने ब्राह्मण विरोधी कहते हैं। राय कहते हैं कि हिन्दी कथा संसार में उन्होने जो लकीर खींच दी है, उसे आज तक कोई पार नहीं सका है।

प्रेमचंद ने उस समय की छोटी से छोटी बातों को अपने लेखन में शामिल किया है। और भाषा इस इतनी आम और सरल है कि उससे एक कम पढ़ा -लिखा व्यक्ति भी अपने को जोड़ लेता है। आधुनिक समय में हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की जितनी लोक प्रियता है, उतनी शायद ही किसी की हो।

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वह 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में पैदा हुए थे। बाद में वह हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद नाम से विख्यात हुए।

साहित्यिक जीवन प्रारंभ
प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था। वह नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है। उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद, है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास हमखुर्मा व हमसवाब है, जिसका हिंदी रूपांतरण प्रेमा नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ।1908 में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतिया. जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी ‘ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।

लोकप्रिय कहानीकार-उपन्यासकार
वे हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चांद, सुधा आदि में लिखा। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। उनका निधन 8 अक्टूबर,, 1936 को वाराणसी हुआ था। हिन्दी कहानी व उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को प्रेमचंद युग कहा जाता है।

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