विधान परिषद सभापति और विधान सभा अध्यक्ष पद पर सत्ताधारी दल अपने नेताओं को निर्वाचित करके भेजना चाहता है। इसके पीछे इन दोनों ही पदों पर विराजमान व्यक्ति को मिलनेवाले असीमित अधिकार हैं। राज्य विधान सभा या संसद ऐसा स्थान है, जहां न्यायपालिका के अधिकार सीमित हो जाते हैं, इसके साथ ही पुलिस के अधिकार क्षेत्र से परे है।
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विधान परिषद सभापति की निर्वाचन प्रक्रिया
- राज्यपाल सभापति के निर्वाचन की अधिसूचना जारी करते हैं
- निर्वाचन के एक दिन पहले दिन के बारह बजे तक इच्छुक विधान परिषद सदस्य प्रधान सचिव के पास प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं
- विधान परिषद का सदस्य किसी का नाम प्रस्तावित करता है, जिसका अनुमोदन अन्य सदस्य के द्वारा किया जाता है
- ऐसी स्थिति में प्रस्तावित व्यक्ति सभापति के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है, इसका एक निवेदन भी प्रस्तुत करना आवश्यक है
- प्राप्त हुए नामों की पड़ताल के बाद निर्वाचन के दिन उसे विधान परिषद की कामकाज पत्रिका में निर्दिष्ट किया जाता है और जिस क्रम में वह होता है, उसी क्रमानुसार सभागृह में प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है
- इसमें मतदान का अधिकार विधान परिषद के सदस्यों को ही होता है
- प्रस्ताव सभागृह में प्रस्तुत होने के बाद उसे मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाता है, पहला प्रस्ताव मान्य होने के बाद अन्य प्रस्तावों को प्रस्तुत नहीं किया जाता। जिस उम्मीदवार का निर्वाचन होता है, वह सभागृह का सभापति होता है।