प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से आने वाले पोषण माह में कुपोषण उन्मूलन के प्रयासों में भाग लेने का आग्रह किया । उन्होंने कहा कि सामाजिक जागरूकता के प्रयास कुपोषण की चुनौतियों से निपटने में अहम भूमिका निभाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 92वें संस्करण में कहा कि सितम्बर का महीना त्योहारों के साथ-साथ पोषण से जुड़े बड़े अभियान को भी समर्पित है। हर साल 1 से 30 सितम्बर के बीच पोषण माह मनाते हैं। उन्होंने कहा कि कुपोषण के खिलाफ पूरे देश में अनेक रचनात्मक और विविध प्रयास किए जा रहे हैं। प्रौद्योगिकी का बेहतर इस्तेमाल और जन-भागीदारी भी पोषण अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा बना है। देश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल डिवाइस देने से लेकर आंगनबाड़ी सेवाओं की पहुंच को मॉनिटर करने के लिए पोषण ट्रैकर भी लॉन्च किया गया है। सभी आकांक्षी जिले और उत्तर पूर्व के राज्यों में 14 से 18 साल की बेटियों को भी, पोषण अभियान के दायरे में लाया गया है। कुपोषण की समस्या का निराकरण इन कदमों तक ही सीमित नहीं है। इस लड़ाई में, दूसरी कई और पहल की भी अहम भूमिका है। उदाहरण के तौर पर, जल जीवन मिशन को ही लें, तो भारत को कुपोषणमुक्त कराने में इस मिशन का भी बहुत बड़ा असर होने वाला है।
मध्य प्रदेश में किया गया सफलतापूर्वक प्रयोग
कुपोषण दूर करने में गीत-संगीत और भजन के इस्तेमाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के दतिया जिले में मेरा बच्चा अभियान में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। इसके तहत जिले में भजन-कीर्तन आयोजित हुए, जिसमें पोषण गुरु कहलाने वाले शिक्षकों को बुलाया गया। एक मटका कार्यक्रम भी हुआ इसमें महिलाएं आगनबाड़ी केंद्र के लिए मुट्ठी भर अनाज लेकर जाती है और इसी अनाज में शनिवार को बलिभोज का आयोजन होता है। इससे आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने के साथ हो कुपोषण भी कम हुआ है।
कुपोषण से लड़ाई का तरीका यूनिक
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार असम के बोंगाई गांव में सम्पूर्णा नामक एक दिलचस्प परियोजना चलाई जा रही है । इस प्रोजेक्ट का मकसद कुपोषण के खिलाफ लड़ाई है और इस लड़ाई का तरीका भी बहुत यूनिक है। इसके तहत किसी आंगनबाड़ी केंद्र के एक स्वस्थ बच्चे की मां, एक कुपोषित बच्चे की मां से हर सप्ताह मिलती है और पोषण से संबंधित सारी जानकारियों पर चर्चा करती है। यानी एक मां, दूसरी मां की मित्र की मदद करती है, उसे सीख देती है। इस प्रोजेक्ट की मदद से इस क्षेत्र में एक साल में 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों में कुपोषण दूर हुआ।