हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) अब भारतीय लड़ाकू विमानों के साथ-साथ देश के लिए पीएसएलवी रॉकेट भी बनाएगा। एचएएल और एलएंडटी कंसोर्टियम ने न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ पांच पीएसएलवी रॉकेट बनाने के लिए 860 करोड़ रुपये का सौदा किया है। यह समझौता ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (पीएसएलवी) के एंड-टू-एंड उत्पादन में पहला प्रयास है।
एचएएल के सूत्रों ने कहा कि यह अनुबंध पांच पीएसएलवी रॉकेटों का निर्माण करने के लिए किया गया है, जो भारत का बहुमुखी प्रक्षेपण यान है। तीन बोलियों के तकनीकी-व्यावसायिक मूल्यांकन के बाद एचएएल-एल एंड टी कंसोर्टियम पीएसएलवी के एंड-टू-एंड उत्पादन के लिए तकनीकी रूप से योग्य और एल1 बोलीदाता के रूप में उभरा था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने पीएसएलवी रॉकेट उत्पादन के लिए एचएएल और एलएंडटी कंसोर्टियम के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
कंसोर्टियम की ओर से बताया गया है कि इस सौदे में एचएएल की 52 और एलएंडटी की 48 फीसदी साझेदारी होगी। दो साल से भी कम समय में इसरो को पहला स्वदेशी रॉकेट देने में सक्षम होंगे। अधिकारी के अनुसार वर्तमान में भारत की तीसरी पीढ़ी के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी के लगभग 80 प्रतिशत मैकेनिकल सिस्टम और 60 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम उद्योग से आते हैं। कंसोर्टियम अब सरकारी स्वामित्व वाली ठेकेदार संचालित ‘गोको’ मॉडल के तहत इसरो की मौजूदा सुविधाओं का उपयोग करके लॉन्चर के उत्पादन, संयोजन और एकीकरण के लिए जिम्मेदार होगा।
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एनएसआईएल के अनुसार उसकी अगली योजना पूरी तरह से स्वदेश निर्मित जीएसएलवी-मार्क III रॉकेट को साकार करने की है। इस साल जून में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एनएसआईएल को 10 इन-ऑर्बिट संचार उपग्रहों के हस्तांतरण को मंजूरी दी थी। सरकार ने एनएसआईएल की अधिकृत शेयर पूंजी 1,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7,500 करोड़ रुपये करने को भी मंजूरी दी थी। अंतरिक्ष विभाग ने एनएसआईएल को शुरू से अंत तक वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों और पूर्ण उपग्रह ऑपरेटर के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी है। एनएसआईएल ने 2020-21 में 432.67 करोड़ रुपये के परिचालन से राजस्व और 121.84 करोड़ रुपये के कर के बाद लाभ हासिल किया है।
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