इस तरह मनाया गया राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का वर्षगांठ

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाई वादक पं. महेंद्र प्रसन्ना ने साथियों के साथ राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की धुन शहनाई पर बजाई।

147

राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् के वर्षगांठ पर 7 सितंबर को सिगरा स्थित भारत माता मंदिर मंदिर में शहनाई की मंगल धुन प्रस्तुत कर स्वतंत्रता समर के सेनानियों को नमन किया गया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाई वादक पं. महेंद्र प्रसन्ना ने साथियों के साथ राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् की धुन शहनाई पर बजाई तो मौजूद लोग भी देशभक्ति से ओत-प्रोत हो गये। वंदे मातरम, सुजलाम सुफलाम सश्यश्यामलम की धुन सुन भारत माता मंदिर परिसर में घुमने आये विदेशी पर्यटक भी ठहर गये।

गौरतलब है कि, सात सितंबर 1905 को काशी में कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार इसका गायन हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत के सम्मान में शहनाई वादक पं. महेंद्र प्रसन्ना ने विगत वर्षो की भांति शहनाई बजा परम्परा का निर्वहन किया। इस अवसर पर कलाकार ने कई देश भक्ति गीतों की धुन प्रस्तुत की।

ये भी पढ़ें – जानिये, ब्रिटेन की नई गृह मंत्री भारतवंशी सुएला ब्रेवरमैन हैं कौन?

मिला राष्ट्रीय गीत का दर्जा 
महेंद्र प्रसन्ना ने बताया कि वह पिछले कई सालों से प्रतिवर्ष अनवरत इस खास दिन पर संगीत साधकों के साथ शहनाई की धुन पर वंदेमातरम गीत की प्रस्तुति देते आ रहे है। बंकिमचंद चटर्जी ने 7 नवम्बर 1876 को वंदे मातरम गीत के प्रथम दो पदों की रचना की थी। 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में इस गीत को राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला। आजाद भारत में पहली बार 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्राप्त हुआ और फिर 7 सितम्बर 1950 को पहली बार संसद में इसे गाया गया।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.