तलाक की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय सीधे सुनवाई कर सकता है या नहीं, फैसला सुरक्षित

सर्वोच्च न्यायालय की संविधान बेंच ने तलाक की याचिका मसले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

150

क्या सर्वोच्च न्यायालय को किसी शादी को अपनी तरफ से सीधे रद्द करार देने या तलाक का अधिकार है या ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद ही उसे अपील सुननी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान बेंच ने इस मसले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुरक्षित रखा। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता में गठित बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी हैंं।

ये भी पढ़ें – संघ प्रमुख ने साधा अमेरिका-चीन पर निशाना, दूसरे देशों की मदद को लेकर कही ये बात

कोर्ट ने एमिकस क्यूरी किया नियुक्त 
इस मामले पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह, वी गिरी, कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा को कोर्ट ने एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि दो बहुत अच्छे लोग अच्छे साथी नहीं हो सकते हैं। कई बार हमारे सामने ऐसे मामले आते हैं, जहां लोग काफी समय तक साथ रहते हैं और फिर शादी टूट जाती है। इंदिरा जयसिंह ने कहा कि तलाक की याचिका दायर होने पर आम तौर पर आरोप और प्रत्यारोप होते हैं।

न्यायालय ने की ये टिप्पणी
जस्टिस संजय किशन कौल ने दोष सिद्धांत के मसले पर कहा कि यह भी मेरे विचार से बहुत व्यक्तिपरक है। कोई कह सकता है कि वह सुबह उठकर मेरे माता-पिता को चाय नहीं देती है। क्या यह एक दोष सिद्धांत है। आप चाय को बेहतर तरीके से बना सकते थे। बेंच ने कहा कि उनमें से बहुत से सामाजिक मानदंड से उत्पन्न हो रहे हैं, जहां कोई सोचता है कि महिला को यह करना चाहिए या पुरुषों को ऐसा करना चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा कि यहीं से हम गलती का श्रेय देते हैं। दरअसल ये एक सामाजिक मानदंड की समझ है कि किसी विशेष चीज को कैसे किया जाना चाहिए।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.