संविधान का विरोध और उसका उल्लंघन करना भी गद्दारी है। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि, कांग्रेस ने देश से गद्दारी की है। इसके साक्ष्य के रूप में उन्होंने पांच ऐसे कानूनों को गिनाया जिससे संविधान की मूल भावना और नागरिकों के हितों पर अतिक्रमण हुआ।
हिंदी के शीर्ष समाचार माध्यम में एक बहस के बीच सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और सूचना कानून कार्यकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने अपने आरोपों के पक्ष में उदाहरण भी दिया। अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जिस प्रकार गलत तरीके गाड़ी चलाना चालक की और गलत इलाज करना डॉक्टर की गद्दारी है उसी प्रकार संविधान के विपरीत जाकर गलत कानून बनाना देश से गद्दारी है। इसके समर्थन में उन्होंने साक्ष्य भी गिनाए।
वो पांच साक्ष्य
- द प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोवीजन) एक्ट 1991- 1991 में कांग्रेस ने कानून बनाकर हिंदुओं के लिए मंदिर जाने का रास्ता बंद कर दिया। यह कानून जब लाया गया, उस समय राम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था, उस आंदोलन को रोकने के लिए यह कानून लाया गया था।
क्या है कानून? – इस कानून के अंतर्गत 15 अगस्त 1947 के पहले के धार्मिक स्थानों को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। जिसका अर्थ था कि, राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ जी समेत देश के वह लाखो मंदिर जिन्हें आक्रांताओं ने तोड़कर मस्जिदें खड़ी की थीं, उन्हें फिर मंदिर नहीं बनाया जा सकता है। - 1992 में माइनॉरिटी कमिशन ऐक्ट बनाया – कांग्रेस ने इस कानून से हिंदू और मुसलमानों को ही नहीं बांटा बल्कि, हिंदुओं में आपस में भी भेद खड़ा कर दिया। जिसमें जैन, बौद्ध आदि को अल्पसंख्यक बना दिया और दूसरे को बहुसंख्यक बना दिया।
क्या है कानून? – इसमें अध्यक्ष समेत पांच सदस्य होते हैं। इसके सभी सदस्य अल्पसंख्यक समाज से होंगे। यह अल्पसंख्यक के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार को प्रभावी उपायों की सिफारिश करता है। अल्पसंख्यकों को अधिकारों या सुरक्षा उपायों से वंचित करने की शिकायतों को सुनने का अधिकार होता है। इसे दीवानी न्यायालय के अधिकार हैं। इसमें अल्पसंख्यकों की व्याख्या भी है। - 1995 में वक्फ कानून बनाया – यह कानून इतना खतरनाक है कि, यदि वक्फ किसी संपत्ति पर अपना अधिकार जता दे तो, पीड़ित पक्ष न्यायालय नहीं जा सकता। उसे वक्फ ट्रिब्यूनल जाना पड़ेगा।
क्या है कानून? – ऐसा कानून हिंदू, जैन, पारसी, ईसाई किसी के लिए नहीं। इसे सिर्फ मुस्लिमों के लिए बनाया गया है। वर्ष 1995 में वक्फ कानून को अतिरिक्त अधिकार सौंप दिये गए। जिसमें वक्फ बोर्ड के सीईओ को वक्फ कानून के सेक्शन 28 के अंतर्गत किसी भी जिलाधिकारी को आदेश देने का अधिकार प्रदत्त किया गया है।इसके आलावा वक्फ की संपत्ति के लिए स्वतंत्र सर्वेयर की नियुक्ति करने का प्रावधान है, जो मुस्लिम होना चाहिए और वक्फ कानून के सेक्शन 4 के अंतर्गत उसे यह अधिकार है कि, यदि किसी संपत्ति के सर्वेक्षण में उसे लगता है कि, संबंधित संपत्ति वक्फ बोर्ड की है तो वह नोटिस जारी कर सकता है।वक्फ कानून के सेक्शन 40 के अंतर्गत यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि, संपत्ति उसकी है तो वह नोटिस जारी कर सकता है। इसके लिए संबंधित पक्ष को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास ही जाना होगा। ट्रिब्यूनल का निर्णय इस संबंध में अंतिम माना जाएगा।वक्फ कानून के सेक्शन 83 के अनुसार वक्फ ट्रिब्यूनल में दो जज होंगे, जो मुस्लिम समाज के ही होने चाहिये। यदि किसी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है तो संबंधित पक्ष को ट्रिब्यूनल का निर्णय मानना होगा।सेक्शन 85 ट्रिब्यूनल को यह अधिकार देता है कि, उसका निर्णय ही अंतिम होगा। यानी वक्फ बोर्ड के दावे का निर्णय भी उसी की ट्रिब्यूनल करेगी। वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल के निर्णय को दीवानी न्यायालय या उच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। - 2010 में फॉरेन कंट्रिब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट – माओवादियों, जिहादियों को फंडिग के लिए कानून बनाया। इससे विदेश से फंडिंग आने लगी और देश विरोध गतिविधियां तेजी से बढ़ने लगी। आरोप है कि इस कानून के माध्यम से विदेशी धन नियंत्रित नहीं होता बल्कि, विदेशी धन को कानूनी रूप से लाया जाने लगा।
क्या है कानून? – इस कानून से विदेश से पैसे लाने की छूट दी गई। जिसके कारण देश में बड़ी संख्या में गैर सरकारी संगठन, राजनीतिक पार्टी आदि विदेशी चंदे लेने लगे। लेकिन धीरे-धीरे इसमें दोष उभरने लगे और विदेशी चंदे का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों में होने लगा। जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसमें व्यापक बदलाव किये, जिसका परिणाम है कि बड़ी संख्या में गैर सरकारी संगठनों का षड्यंत्र खुला। - 2012 में मदरसा को शिक्षा अधिकार कानून से बाहर कर दिया
क्या है कानून? – द राइट ऑफ चिल्ड्रेन टू फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन (अमेंडमेन्ट) एक्ट 2012। इस कानून के अंतर्गत प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया। लेकिन इस अधिकार की परिधि से मदरसे या धार्मिक शिक्षा देनेवाले संस्थानों को बाहर कर दिया।