बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एडीए की नई सरकार बने करीब ढाई महीने हो गए हैं लेकिन राज्य में राजनैतिक उठापटक अभी तक जारी है। भारतीय जनता पार्टी भी इस मामले में पीछे नहीं है। उसने पार्टी के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन को एमएलसी उम्मीदवार बनाकर इसका स्पष्ट संकेत दिया है।
एक तीर में दो निशान
शाहनवाज हुसैन के सहारे बीजेपी ने एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश की है। एक तरफ वह राज्य में सबसे ज्यादा सीटों( 75) पर जीत हासिल करनेवाली आरजेडी को झटका देने की तैयारी में है, वहीं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के वोट बैंक पर भी सेंध लगाने के जुगाड़ में है।
आरजेडी की बढ़ेगी मुसीबत
बता दें कि बिहार में सरकार भले ही एनडीए की है, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी लालू यादव की पार्टी आरजेडी ही है। उसने 75 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि बीजेपी 74 सीटों के साथ दूसरे नंबर है। इसके साथ ही वह नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से भी छुटकारा पाना चाहती है। वह अपने दम पर पार्टी खड़ी करने की कोशिश में है और उसी रणनिति पर काम कर रही है। इसके लिए सबसे पहले बीजेपी को माई यानी मुस्लिम यादव फॉर्मूले को तोड़ना होगा।
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पार्टी की बड़ी रणनीति
अब तक केंद्र में राजनीति करते रहे शाहनवाज हुसैन को बिहार की राजनीति में भेजने के पीछे पार्टी की बड़ी रणनीति काम कर रही है। बताया जा रहा है कि बीजेपी हुसैन के जरिए मुसलमानों को अपने साथ जोड़ना चाहती है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को बीजेपी की बी टीम मानी जाती है। हालांकि बीजेपी के साथ ही ओवैसी भी इससे इनकार करते रहे हैं। अब शाहनवाज हुसैन के मैदान में उतरने से बीजेपी की रणनीति साफ हो गई है।
ओवैसी के वोटबैंक में सेधमारी की कोशिश
ओवैसी के मैदान में उतरने से आरजेडी को 2019 के चुनाव में कम से कम 10 सीटों का नुकासान हुआ। पांच सीटों पर जहां ओवैसी की पार्टी ने जीतकर आरजेडी को सीधा नुकसान पहुंचाया, वहीं कम से कम पांच सीटों पर उसके उम्मीदवारों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब शाहनवाज हुसैन के आने के बाद आरजेडी के साथ ही ओवैसी की पार्टी को भी भारी नुकसान हो सकता है।
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सुशील कुमार मोदी लगाए जाएंगे किनारे
बिहार में सरकार गठन के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को मंत्रिमंडल में शामिल न कर बीजेपी ने सबको चौंका दिया था, हालांकि बाद में उन्हें राज्य सभा का सदस्य बनाकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय कर दिया गया था। अब शाहनवाज हुसैन को बिहार में शिफ्ट करने के बाद समझा जा रहा है कि उन्हें सुशील कुमार की जगह पर स्थापित किया जाएगा। बता दें कि दोनों के बीच कभी भी सबकुछ ठीक नहीं रहा। नीतीश कुमार के समर्थक माने जा रहे सुशील कुमार मोदी से पार्टी निराश बताई जा रही है।
चिराग पासवान का क्या होगा?
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। चुनाव के समय नये प्रयोग करने के चक्कर में उनकी पार्टी का आधार हिल गया है और उसका असर अभी तक देखा जा रहा है। पहले से दो विधायकों की बदौलत राजनीति कर रहे पार्टी प्रमुख चिराग पासवान 2019 के हुए चुनाव के बाद एक विधायक के भरोसे रह गए हैं। इसके साथ ही नीतीश कुमार से पंगा लेकर उन्होंने बड़ी मुसीबत मोल ले ली। चुनाव के दौरान आक्रामक रुख अख्तियार करना उनके लिए महंगा साबित हो रहा है। अब ताजा खबर यह है कि दो दर्जन पार्टी के नेता-कार्यकर्ताओं ने लोजपा छोड़कर एनडीए का दामन थामने का ऐलान कर दिया है।