मीडिया ट्रायल को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने सख्त आदेश जारी किया है। न्यायायलय ने कहा है कि किसी भी मामले में मीडिया ट्रायल करना उचित नहीं है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए जब तक गाइडलाइंस नहीं बन जातीं, तब तक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइंस लागू रहेंगी। इस बीच मीडिया ट्रायल को लेकर उसने सख्त रुख अपनाया है। न्यायालय ने किसी भी मामले में पीड़ित या आरोपी की फोटो या चेहरा न दिखाने और किसी भी घटना को रिक्रिएट नहीं करने का आदेश जारी किया है।
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मीडिया ट्रायल कानून का उल्लंघन
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में जिस तरह से मीडिया में रिपोर्ट दिखाई गई, उसे मीडिया ट्रायल माना जा रहा है। इस बारे में कई पूर्व पुलिस अधिकारियों,समाजसेवकों और स्वयंसेवक संस्थाओं ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। नवंबर 2020 में मुख्य न्यायाधीश दिपंकर दत्ता और गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब उस मामले में न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी मामले की जांच चलने या अदालती प्रक्रिया से गुजरने के दौरान मीडिया ट्रायल किया जाना केबल टीवी रेगुलेशन एक्ट का उल्लंघन है।
न्यायालय ने क्या कहा?
- मीडिया ट्रायल न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप है।
- रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाऊ द्वारा किया गया मीडिया ट्रायल प्रथम दृष्टि में कानून की अवमानना है।
- इन मामलों में उचित कार्रवाई करने की जरुरत है।
- सुशांत सिंह राजपूत मामले में जिस तरह समाचार का प्रसारण किया गया, उसे केंद्रीय सूचना ओर प्रसारण मंत्रालय ने भी गंभीरता ने नहीं लिया।
- जब तक मामले की जांच चल रही है, तब तक पीड़ित/पीड़िता की तस्वीर या घटना को रिक्रिएट न किया जाए।
ये थे याचिकार्ता
पूर्व पुलिस महानिदेशक पीएएस पसरीचा, के सुब्रम्हण्यम, डी. शिवानंदन, संजीव दयाल, सतीश चंद्रा
याचिकाकर्ता का क्या थे आरोप?
कुछ टीवी चैनल कई मामलों में पुलिस की दिन-रात बदनामी करने की मुहिम चलाते हैं । जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी कर किसी को दोषी करार नहीं दिया जाता, तब तब भारत के कानून के मुताबिक उसे दोषी नहीं माना जा सकता, लेकिन कई बार वे मीडिया ट्रायल कर वे कानून का उल्लंघन करते हैं।