#दीपावली में बिक्री के लिए विद्युत झालर, पेंट, स्टील बर्तन के स्टॉक से सजे बाजार

दिवाली पर्व में पांच दिन शेष रह गया है। ऐसे में बड़े दुकानदारों के साथ स्टाकिस्टों ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नया माल मंगा लिया गया है।

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वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे दो साल तक दीपावली पर्व पर बाजारों की रौनक छिन गई थी। लेकिन इस बार इसकी रौनक बाजारों में छाने लगी है। पर्व में पांच दिन शेष रह गया है। ऐसे में बड़े दुकानदारों के साथ स्टाकिस्टों ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नया माल मंगा लिया गया है।

गांव, चट्टी चौराहों के साथ शहर के गली मोहल्ले के साथ मुख्य चौराहों पर अस्थाई दुकानें सजने लगी हैं। पर्व पर विद्युत झालरों के साथ घरों को रंग-रोगन के लिए पेंट, चूना की खरीददारी हो रही है। नगर के मैदागिन, पांडेयपुर आदि इलाकों में पेंट की दुकानों पर चहल-पहल बढ़ गई है।

मैदागिन के पेंट विक्रेता बबलू सिंह बताते हैं कि लोग घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों के लिए पेंट खरीद रहे हैं। लोगों को ब्रांडेड पेंट पसंद आ रहे हैं। वजह है कि मंहगाई के दौर में घर रोज-रोज पेंट नहीं हो सकते। ऊपर से मजदूरी भी बढ़ गई है। दुकानदार बबलू ने बताया कि पेंट के दामों में वृद्धि हुई है, लेकिन वर्तमान में ऐसा कोई भी सामान नहीं है जिसके दाम न बढ़ा हो। उन्होंने बताया कि इस बार बनारस में दीप पर्व पर अनुमानित 200-250 करोड़ के कारोबार होने की उम्मीद है। छोटे और फुटकर दुकानों को छोड़कर शहर के मलदहिया स्थित पेंट बाजार में भी ग्राहकी दिख रही है। बबलू सिंह के अनुसार लोग पेंट कराने के लिए इनेमल पेंट, वॉटर बेस्ड रोयाल लक्जरी एनामेल, एशियन, अपेक्स आदि कम्पनी काे अधिक पसंद कर रहे हैं।

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उधर, पर्व पर कुम्हारों को भी आर्डर मिल रहे हैं। इस बार मिट्टी के सामान्य दीयो के साथ लोग डिजाइनर दीये भी पसंद कर रहे हैं। कुम्हारों के सामने गंगा और वरूणा में बढ़ाव के चलते मिट्टी का भी संकट हैं। ग्रामीण अंचल से मंगाने पर ढ़ुलाई अधिक लग रही है। हुकुलगंज नई बस्ती के शंकर प्रजापति बताते हैं कि वरूणा में बढ़ाव के चलते मिट्टी नहीं मिल पा रही है। कोहरान बस्ती के लोगों के लिए वरूणा बड़ा सहारा रही है। फिर भी दीयों के आर्डर को देखते हुए मिट्टी का दूसरे जगह से इंतजाम करना पड़ रहा है। पर्व को देखते हुए नई बस्ती पांडेयपुर कुम्हारों के चाक ने गति पकड़ ली है। बस्ती में कुम्हार पूरे दिन काम में जुटे दिख रहे हैं। मिट्टी के दीये बनाने के लिए परिवार के सभी सदस्य हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।

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