#Diwali2022: पेंटरों के उम्मीदों को मिली उड़ान, अच्छी कमाई की आस

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद घर भी खुशियां लाने की उम्मीद में पेंटर और उनके सहयोगी कई घरों में काम कर रहे हैं।

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दीप पर्व दीपावली में तीन दिन शेष हैं। ऐसे में दूसरों के घरों की दीवार को चमकाने के लिए पेंटर भी रातदिन एक कर रहे हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद अपने घर भी खुशियां लाने की उम्मीद में पेंटर और उनके सहयोगी कई घरों में काम पकड़ रहे हैं। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस बार उनकी और परिवार की दीवाली भी रोशन रहेगी। साल भर काम की तलाश में भटकने वाले पेंटरों के लिए दिवाली पर्व वरदान से कम नहीं है।

जनपद चंदौली के चकिया मनकपड़ा (पड़निया) के पेंटर रामाश्रय ने बताया कि कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद दीपावली पर भरपूर काम मिल रहा हैं । रात दिन परिश्रम के बाद इस बार हम लोगों की दिवाली भी अच्छी होने की उम्मीद है। रामाश्रय बताते है कि उन्हें एक दिन का 650 रूपये मजदूरी मिलती है। काम अधिक होने पर सहयोगी को भी लेकर आते है।

ठेकेदार से जुड़ने पर मिल जाता है काम
उसने आगे बताया, दीपावली पर्व के पहले अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने के लिए गांव जायेंगे। पत्नी को गुजरे कई साल हो गये। गांव में थोड़ी बहुत खेतीबारी है। बच्चे मिलकर खेती करते है। काम न मिलने पर गांव चला जाता हूं। शहर में किराये के मकान और नियमित खुराक के लिए लाले तब पड़ते है जब हमें काम नही मिलता। रामाश्रय बताते है कि ठेकेदार से जुड़ने पर उन्हें काम मिल जाता है। लेकिन मजदूरी कम मिलती है। घरों में चूना और पेंट करने के दौरान काफी सावधानी बरतते है। लेकिन हाथ में जलन भी होती है। रामाश्रय बताते है कि इस बार दीप पर्व पर लोग ब्रांडेड पेंट ही अधिक लगवा रहे है। कुछ लोग पूरे घर के बजाय मुख्य गेट और खिड़कियों को ही रंगरोगन करा रहे है। रामाश्रय बताते है कि बड़े व्यापारी और सम्पन्न लोग घरों की रंगाई-पुताई के लिए डिस्टेंपर और पेंट्स खुद ही खरीद कर ले आते है।

पेंट कंपनियों की मांग अधिक
पेंट कम्पनियों से ही पेंटरों को भी ले आते है। मध्यम वर्ग के लोग लेबर मंडी से पेंटर लेकर आते है। मैदागिन के पेंट व्यापारी बबलू सिंह बताते है कि दिहाड़ी पेंटर समय पर काम पूरा नहीं करते। ऐसे में पेंट कंपनियों से और हमारे प्रशिक्षित पेंटर से ही हम लोग काम को वरीयता देते है। साइट (जिन घरों में काम करना है) वहां अपने पेंटर को ही भेजते हैं। इससे लोगों को ढूंढने और फिर उनसे मोलभाव करने में अपना समय नहीं बर्बाद करना पड़ता। बबलू सिंह बताते है कि दशकों पहले लोग लोग खुद ही घर की सफेदी मिलजुल कर करते थे। लेकिन बदलते दौर में यह सब काम कॉन्ट्रैक्ट पर होने लगा है।

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