‘वक्फ बोर्ड’ का अफजल खान प्रेम, छत्रपति शिवाजी का नाम रखने पर विरोध में पहुंचा न्यायालय

आक्रांताओं के नाम बदलने पर भी इस्लाम धर्मियों को आपत्तियां होती रही हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता जग विदित है, इसके बाद भी सदियों पुरानी गलतियों को सुधारने में वक्फ बोर्ड और अन्य इस्लामी पक्ष सदा रोड़े डालते रहे हैं।

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अहमदाबाद के सारंगपुर में स्थित एक निवासी क्षेत्र का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखने से वक्फ बोर्ड नाराज हो गई है। इस क्षेत्र का नाम ‘अफजल खान नो टेकरो’ था। जिसे अमदाबाद महानगर पालिका ने बदलकर ‘शिवाजी नो टेकरो’ कर दिया। जिसके विरुद्ध सुन्नी वक्फ बोर्ड न्यायालय पहुंच गई है। इस प्रकरण में उच्च न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय की आपत्ति पर विचार करने को कहा है।

बता दें कि, सारंगपुर स्थित कपड़ा बाजार के पास एक निवासी क्षेत्र है, जिसका नाम ‘अफजल खान नो टेकरो’ है। इसे लेकर अमदाबाद महानगगर पालिका (एएमसी) की नगर नियोजन समिति ने 14 अक्टूबर को एक प्रस्ताव रखा था। जिसमें अफजल कान नो टेकरो का नाम बदलकर ‘शिवाजी नो टेकरो’ करने का उल्लेख थी। इसे अनुमोदन के लिए स्थाई समिति के पास भेजा गया। जिसे लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिक्कत हो गई।

वक्फ बोर्ड को अफजल पसंद
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एएमसी के निर्णय को चुनौती देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उसका दावा है कि, कपड़ा बाजार के समक्ष 3,116 वर्ग मीटर के भूखंड का वह मालिक है। इस पर कब्रिस्चतान, पीर अफजल खान मस्जिद और दरगाह है, इसके अलावा वहां मुस्लिम व हिंदुओं की बस्ती है। वक्फ बोर्ड के अनुसार दरगाह और मस्जिद पिछले 300 वर्षों से वहां पर है। यहां बस्ती है, जिनमें उसके किराएदार रहते हैं। इस क्षेत्र का नाम अफजल खान नो टेकरो है। इस प्रकरण में उच्च न्यायालय ने एक सप्ताह के भीतर एएमसी को निर्णय लेने को कहा है।

क्या यह वही अफजल खान है?
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि, अफजल खान नो टेकरो और मस्जिद 500 वर्ष पुरानी है। परंतु, उसने कहीं भी यह नहीं कहा है कि, यह अफजल खान आदिलशाह का सेनातपति था या नहीं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने आक्रांता और क्रूर इस्लामी शासक के सेनापति अफजल खान को 10 नवंबर, 1659 को मौत के घाट उतार दिया था।

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