सेब की खेती के लिए प्रसिद्ध कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के एकाधिकार को अब लद्दाख के सेब चुनौती दे रहे हैं। लद्दाख के किसान अपनी बंजर और बेकार भूमि में सेब के बाग लगा रहे हैं। देश में खुबानी उत्पादन में अपनी खास पहचान रखने वाले लद्दाख में सेब का उत्पादन भी बढ़ रहा है।
केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख में सेब के अनुसंधान और बागान लगाने के काम में गति आई है। सेब यहां के किसानों की आर्थिक और पारिवारिक सेहत के लिए वरदान साबित हो रहा है। पहले कश्मीर और हिमाचल में ही सेब का उत्पादन होता था लेकिन बीते सालों से लद्दाख में सेब उत्पादन बढ़ा है। इस वर्ष करीब चार हजार मीट्रिक टन सेब की पैदावार हुई है। यहां से देश के अन्य राज्यों में सेब का निर्यात होने लगा है।
कारगिल जिले के मुख्य उद्यानिकी अधिकारी अली रजा बताते हैं, “कारगिल जिले में पहले परम्परागत तरीके से सेब की पैदावार होती थी, इसलिए किसानों को फायदा नहीं मिलता था। कारगिल और लद्दाख के पहाड़ी क्षेत्रों में खुबानी और सेब की पैदावार बढ़ाने के लिए उद्यानिकी विभाग किसानों को बंजर भूमि पर उच्च घनत्व वाले सेब के बागान लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इस वर्ष कारगिल में सेब का उत्पादन करीब तीन हजार मीट्रिक टन हुआ।”
कारगिल के सालिस्कोटे गांव के किसान मुर्तजा बताते हैं, “सेब का बाग लगाने से उनकी आमदनी बढ़ी है। सेब से करीब एक लाख रुपये सालाना आमदनी हो जाती है। पहले हमारी जमीन बंजर थी। करीब छह साल पहले यह सेब का बाग लगाया था। अब हम लद्दाख से बाहर भी सेब भेजते हैं।”
कश्मीर की पहचान से आजाद हुआ लद्दाख का सेब
मुख्य उद्यान अधिकारी अली रजा बताते हैं, “ केन्द्र शासित प्रदेश बनने से पहले तक लद्दाख से ताजा फलों के निर्यात पर रोक थी लेकिन अब सरकार ने रोक हटा दी है। देश दुनिया में कहीं भी लद्दाख का फल बेचा जा सकता है। इससे किसानों को फायदा हुआ है और उनका बागवानी की तरफ रूझान बढ़ रहा है। परम्परागत तरीके से सेब के पौधे लगाने पर फल आने में करीब 10 वर्ष लगते हैं। विभाग की ओर से उपलब्ध कराए जा रहे पौधे दो वर्ष में ही फल देने लगते हैं। पहले पैदावार की अधिकांश खपत घरेलू बाजार में ही होती थी। गांवों में होने वाले सेबों के लिए खरीदार नहीं मिलते थे। सेना के जवान ही 35-40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से सेब खरीदते थे। अधिक पैदावार होने पर फसल खराब होती थी। अब दोगुने से भी अधिक दाम मिल रहे हैं। ऐसे में सेब की खेती से जुड़े लद्दाख के किसानों के लिए अच्छे दिन आ गए हैं।” लद्दाख में करकीचू सेब समेत सेबों की 15 किस्में हैं।
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लद्दाख की आबोहवा सेबों के लिए सबसे बेहतर
खुबानी के साथ- साथ सेब के लिए भी लद्दाख की आबोहवा सबसे बेहतर है। सेब को अधिक रोशनी के साथ अधिक ठंड व कम नमी की जरूरत होती है। इस लिहाज से लद्दाख का वातावरण बेहद उपयुक्त है। इसलिए यहां के सेब स्वाद व रंगत में कश्मीर के सेबों से कहीं अधिक उत्तम हैं। लद्दाख के सेब अधिक लाल व मीठे होते हैं और ये लंबे समय तक ताजा भी रहते हैं।
कोडिंग मोथ की वजह से लगा था फलों के निर्यात पर प्रतिबंध
अली रजा बताते हैं, “ जम्मू-कश्मीर सरकार ने लद्दाख क्षेत्र में पैदा होने वाले खुबानी सहित ताजे फलों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। दरअसल, सरकार को आशंका थी कि लद्दाख से आने वाली खुबानी पर उभरने वाले कोडिंग मोथ (साइडिया पोमोनेला) कीट जम्मू-कश्मीर और बाहर निर्यात किए जाने वाले ताजे फल के लिए खतरा बन सकता है। इसी धारणा के चलते लद्दाख से ताजे फलों के निर्यात पर रोक लगा दी गई थी। फिलहाल केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह रोक हटा दी गई है।