वाराणसी में डाला छठ की सुगंध, घरों में गूंज रहे छठ माता के पारम्परिक गीत

28 अक्टूबर 28 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि में नहाय-खाय से पर्व का आरंभ होगा। 29 को पंचमी तिथि में संझवत के दौरान एक समय शाम को मीठा भात (बखीर) या लौकी की खिचड़ी खाई जाती है।

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काशीपुराधिपति की नगरी में दीपावली की नौ त्योहारों से सजी पांच दिनी त्योहारी शृंखला के बीतने के बाद लोक पर्व डाला छठ की सुगंध फिजाओं में बिखरने लगी है। घरों में पर्व की तैयारियों के साथ ठेकुआ प्रसाद बनाने की तैयारियों में महिलाएं जुट गई हैं।

खास बात ये है कि इस चार दिन के पर्व में साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है। सभी प्रसाद देशी घी से निर्मित होते हैं। जिन घरों में छठ का व्रत होता है, उन घरों में चार दिनों तक लहसुन व प्याज का विशेष रुप से परहेज रहता है। छठ माता के पारम्परिक गीत केरवा जे फरेला घवद से,ओह पर सुगा मेडराय.., आदित लिहो मोर अरघिया, दरस देखाव ए दीनानाथ…। उगिहैं सुरुजदेव…। हे छठी मइया तोहार महिमा अपार… कांचहिं बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय..घरों में गूंजने लगे हैं।

ग्रामीण अंचल में भी पर्व को लेकर खासा उत्साह है। ये गाने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर भी उपस्थिति दर्ज कराये हुए है। इस बार भी लोक गायिका शारदा सिन्हा, देवी, मालिनी अवस्थी, कल्पना, मनोज तिवारी, पवन सिंह, खेसारी आदि के छठ के गीतों को लोग सुन रहे हैं। बाजारों में छठ पूजा के लिए नया चावल, गुड़ व सूप-दउरा,गन्ना , फल-फूल,आदि की अस्थायी दुकानें चौराहों पर सज गयी हैं।

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इस तरह चलेगा व्रत का कार्यक्रम
बताते चले, 28 अक्टूबर 28 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि में नहाय-खाय से पर्व का आरंभ होगा। 29 को पंचमी तिथि में संझवत के दौरान एक समय शाम को मीठा भात (बखीर) या लौकी की खिचड़ी खाई जाती है। 30 को षष्ठि पर व्रत का मुख्य दिन रहेगा। व्रती सायंकाल गंगा तट पर या किसी जल वाले स्थान पर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगी । 31 को प्रात:काल अरुणोदय बेला में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। तदुपरांत पारन किया जाएगा।

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