लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर दो साल से तैनात चीनी सैनिक अभी से कमजोर पड़ने लगे हैं। हालांकि, दोनों पड़ोसी देशों ने तनाव के जल्द समाधान की संभावना जताई है लेकिन चीनी खेमे में सबसे बड़ी चिंता आने वाली सर्दियों को लेकर ही है। पीएलए सैनिकों को पहली प्राथमिकता के रूप में सिखाया जा रहा है कि सर्दियों के दौरान अपने दम पर कैसे जीवित रहना है। भारत के साथ दो साल से चल रहे गतिरोध के दौरान खून जमा देने वाली सर्दियों से सबक लेकर चीन के सैनिकों ने उच्च ऊंचाइयों पर बंकर तैयार किये हैं।
दरअसल, ठंड के दिनों में बर्फबारी शुरू होते ही सड़क मार्ग बंद हो जाएंगे, इसलिए इससे पहले ही भारतीय सैनिकों के लिए सारे संसाधन जुटा लिये गए हैं। हालांकि, आकस्मिक स्थिति में वायुसेना के परिवहन विमानों की सेवाएं ली जा सकेंगी लेकिन इन उड़ानों में भी समय की पाबंदी है। दोपहर से पहले विमानों को लेह से बाहर उड़ना पड़ता है, क्योंकि दुर्लभ ऑक्सीजन के साथ तापमान में बढ़ोतरी विमानों के इंजन को प्रभावित करती है। सियाचिन ग्लेशियर में तैनाती और करगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों पर तैनाती का अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के लिए लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं लेकिन ठंड के दिनों में मोर्चों पर तैनाती का अनुभव न रखने वाले चीनी सैनिक अभी से कमजोर पड़ने लगे हैं।
चीनी खेमे की बढ़ रही है चिंता
चीनी खेमे में सबसे बड़ी चिंता आने वाली सर्दियों को लेकर ही है। भारत के साथ सीमाओं की देखरेख करने वाली पीएलए की वेस्टर्न थिएटर कमांड ने सर्दियों के लिए एलएसी के साथ फ्रंटलाइन ऑब्जर्वेशन पोस्ट में अनाज का भंडारण बढ़ा दिया है। चार महीने तक सैनिकों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन, पानी और अन्य आपूर्ति पहाड़ों में सैनिकों के स्टेशनों तक पहुंचाई जा रही है, क्योंकि नवंबर से यातायात में कटौती की जाएगी। पीएलए सैनिकों को पहली प्राथमिकता के रूप में सिखाया जा रहा है कि सर्दियों के दौरान अपने दम पर कैसे जीवित रहना है।
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1962 में कठिन परिस्थितियों में हुई थी लड़ाई
भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए जाना जाता है। 14 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर लड़े गए इस युद्ध ने दोनों पक्षों के सामने रसद और अन्य समस्याएं पैदा कीं। इस युद्ध में दोनों पक्षों ने नौसेना या वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था। इसके विपरीत चीन के साथ सन 1962 के युद्ध में मात खाने वाली भारतीय सेना ने 60 साल बाद मौजूदा टकराव के दौरान खासकर उन्हीं मोर्चों पर खुद को मजबूत किया है, जहां-जहां से उसे हार मिली थी। पिछले युद्ध में चीन ने पैन्गोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी दोनों हिस्सों का इस्तेमाल करके भारत को शिकस्त दी थी लेकिन इस बार भारत की सेना दोनों मोर्चों पर मजबूत है।