अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर साल 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरूकता दिवस का आयोजन किया जाता है, जिसका उद्देश्य आम लोगों को सुनामी जैसी घातक आपदा के बारे में जागरूक करना है। इस दिन प्राकृतिक आपदा सुनामी के बारे में लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता है और ऐसे स्थिति से निपटने के बारे में सुझाव दिए जाते है। विश्व में ऐसे कई देश हैं जो हर साल सुनामी की मार का सामना करते है। कुछ रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक विश्व की 50 प्रतिशत आबादी बाढ़, तूफान और सुनामी के संपर्क में आने का अनुमान है। इस दिन के लिए भी लोगों के बीच जागरूक फैलाने का काम किया जा रहा है। सुनामी से निपटने के लिए लोगों को बुनियादी ढांचे, चेतावनी, और ट्रेनिंग दी जाती है। आपातकाल के समय लोगों को कैसे बचाया जाए।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सुनामी शब्द जापान से आया है, जहां सु शब्द का अर्थ है बंदरगाह और नामी का मतलब है लहर।
समुद्र के भीतर अचानक जब बहुत तेज हलचल होने लगती है तो उसमें उफान उठता है। इससे ऐसी लंबी और बहुत ऊंची लहरे उठना शुरू हो जाता है जो जबरदस्त आवेग के साथ आगे बढ़ता है। इन्हीं लहरों का तेज उठना ही सुनामी कहलाता है। बता दें कि सुनामी जापानी शब्द है जो सू और नामी से मिल कर बना है। सू का मतलब होता है समुद्र तट और नामी का मतलब है होता है लहरें।
पहले सुनामी को समुद्र में उठने वाले ज्वार के रूप में भी लिया जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल समुद्र में लहरे चांद सूरज और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से उठती हैं लेकिन सुनामी लहरें इन आम लहरों से अलग होती हैं।
14 साल पहले भारत की सबसे बड़ी तबाही आई थी।
26 दिसंबर, 2004 में जब क्रिसमस की खुमारी पूरी दुनिया से उतरी भी नहीं थी कि भारत, इंडोनेशिया जैसे देशों में मौत का मातम शुरू हो गया था। बंगाल की खाड़ी में आए 9.1-9.3 मैग्नीट्यूड के भूंकप के बाद दुनिया ने पहली बार सुनामी की दहशत को बेहद करीब से महसूस किया था। सर्वे के मुताबिक, इस सुनामी की जितनी एनर्जी थी वो 23 हजार हिरोशिमा टाइप बम के बराबर थी।
भारतीय समय के अनुसार सुबह 6:28 बजे खूबसूरत समुद्री किनारों ने विकराल रूप धारण कर लिया था। हिंद महासागर में 26 दिसंबर 2004 को आए भूकंप से पैदा हुई सुनामी लहरों की विनाशलीला विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में गिनी जाती है।
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इस आपदा से कई देश हुए शिकार
इस प्राकृतिक आपदा का शिकार कई देशों के 2 लाख से ज्यादा लोग हुए थे। बताया जाता है कि भारत में मरने वालों का आंकड़ा करीब 10 हजार था, लेकिन जानकारी के अनुसार सुनामी से 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गईं थी। उस वक्त ज्यादातर लोग अपने होटलों व घरों में सो रहे थे। जो लोग जगे थे, वो भी समुद्र में उठ रही 30 मीटर (100 फीट) ऊंची लहरों को देखकर डर गए थे। इससे पहले की लोग कुछ समझ पाते सुनामी की विशाल लहरों ने भारत समेत हिंद महासागर किनारे के 14 देशों में कई किलोमीटर दूर तक तबाही फैला दी थी। सीधे शब्दों में समझा जाए तो तटीय इलाकों में समुद्र कई किलोमीटर अंदर तक पांव पसार चुका था। कुछ पल में ही बड़े-बड़े पुल, घर, इमारतें, गाड़ियां, लोग, जानवर और पेड़ सब समुंद्र की इन लहरों में तिनकों की तरह तैरने लगे थे।
सुनामी ने थाईलैंड और बर्मा के तटों पर मचाई तबाही
सुमात्रा में समुंद्र के नीचे दो प्लेटों में आई दरारें खिसकने से उत्तर से दक्षिण की ओर पानी की लगभग 1000 किलोमीटर लंबी दीवार सी खड़ी हो गई थी। सुनामी भूकंप के केंद्र के चारों तरफ नहीं फैली, इसका रुख पूर्व से पश्चिम की तरफ था। भूकंप के पहले घंटे में 15 से 20 मीटर की लहरों ने सुमात्रा के उत्तरी तट को बर्बाद कर दिया था। इसके साथ आचेह प्रांत का तटीय इलाका भी पूरी तरह से समुंद्री पानी में डूब गया था। इसके कुछ देर बाद भारत के निकोबार व अंडमान द्वीप पर भी सुनामी लहरों ने तबाही मचाना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्व की तरह बढ़ रही सुनामी ने थाईलैंड और बर्मा के तटों पर तबाही मचा दी।