प्रधानमंत्री मोदी ने लॉन्च किया गुजराती में चुनावी नारा, मतदाताओं से की ये अपील

गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित होने के बाद पहली बार भाजपा की चुनावी जनसभा को संबोधित करने वलसाड जिले के कपराडा पहुंचे मोदी ने गुजराती में भाषण दिया।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 6 नवंबर को गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए गुजराती में नया चुनावी नारा दिया- ‘मैंने यह गुजरात बनाया है’। उन्होंने कहा कि प्रत्येक गुजराती ने गुजरात को बनाया है। मोदी ने कहा कि गुजरात उन विभाजनकारी ताकतों का सफाया कर देगा, जिन्होंने अपने पिछले 20 साल राज्य को बदनाम करने में बिताए हैं।

गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित होने के बाद पहली बार भाजपा की चुनावी जनसभा को संबोधित करने वलसाड जिले के कपराडा पहुंचे मोदी ने गुजराती में भाषण दिया। उन्होंने राज्य की जनता से इन चुनावों में जीत के सारे रिकॉर्ड तोड़ने में मददाताओं से समर्थन मांगा। मोदी ने कहा, “इस चुनाव में हमारा रिकॉर्ड तोड़ने में मदद करें।”

संबोधन की खास बातें
-गुजरात के विकास के लिए फिर से भाजपा की सरकार को जरूरी बताते हुए मोदी ने कहा कि एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर पूरे गुजरात और समाज को विकसित करने का अवसर आया है। उन्होंने कहा कि हम देश के विकास के लिए गुजरात के विकास की भावना के साथ लगातार काम कर रहे हैं।

-नया चुनावी नारा देते हुए मोदी ने कहा, “हर गुजराती आत्मविश्वास से भरा होता है, इसलिए हर कोई गुजराती बोलता है, भीतर की आवाज बोलती है, हर गुजरात के दिल से एक आवाज निकलती है, मैंने यह गुजरात बनाया है।” उन्होंने कहा कि गुजरात को बनाने के लिए हर गुजराती ने मेहनत की है और खून-पसीना बहाया है।

-मोदी ने कहा कि यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मेरी चुनाव की पहली बैठक आदिवासी भाइयों और बहनों के आशीर्वाद से शुरू हो रही है। उन्होंने कहा कि इस बार मैं अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ना चाहता हूं।

-गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के लिए जनसमर्थन मांगते हुए उन्होंने कहा कि भूपेंद्र के रिकॉर्ड नरेन्द्र से ज्यादा मजबूत होने चाहिए, मैं उसके लिए काम करना चाहता हूं। मोदी ने आगे कहा कि न तो भूपेंद्र और न ही नरेंद्र यह चुनाव लड़ रहे हैं। गुजरात के प्यारे हमारे भाइयों और बहनों द्वारा यह चुनाव लड़ा जा रहा है।

-पिछली सरकारों पर विकास कार्यों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए मोदी ने कहा कि एक जमाने में हम डॉक्टरों की तलाश करते थे, आज आदिवासी इलाकों में अस्पताल और मेडिकल कॉलेज हैं। उन्होंने कहा कि पहले टंकी बनती थी तो एक महीने तक ढोल बजाया जाता था और हैंडपंप लग जाने पर गांव पेड़ा बांटता था। आज एस्टोल जैसी परियोजनाओं के कारण हम अपने आदिवासी गांवों में 200 मंजिल तक पानी पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

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