दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दो हफ्ते के अंदर राष्ट्रगान जन-गण-मन और वंदे मातरम को बराबर का दर्जा देने की मांग करने वाली याचिका पर अपना जवाब कोर्ट के रिकॉर्ड में दाखिल करने का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपना जवाबी हलफनामा दायर तो किया है लेकिन वो कोर्ट के रिकॉर्ड पर नहीं है। ऐसे में कोर्ट केंद्र का जवाबी हलफनामा पढ़े बिना कोई आदेश कैसे पारित कर सकता है। दरअसल, 5 नवंबर को केंद्र सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल किया था लेकिन वो कोर्ट के रिकॉर्ड पर नहीं आ सका। हलफनामा के जरिये केंद्र सरकार ने कहा है कि जन-गण-मन और वंदे मातरम दोनों को बराबर सम्मान का दर्जा हासिल है और हर देशवासी से यही अपेक्षा की जाती है कि वो दोनों का सम्मान करें।
केंद्र सरकार का ऐसा है रुख
-केंद्र सरकार ने कहा है कि यह बात सही है कि प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट के तहत राष्ट्रगान में बाधा डालने वाली स्थिति में जिस तरह के प्रावधान किए गए हैं, वैसे नियम राष्ट्रीय गीत के लिए नहीं हैं लेकिन राष्ट्रगान की तरह राष्ट्रीय गीत की अपनी गरिमा और सम्मान है। केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मसले पर कोर्ट के दखल का कोई औचित्य नहीं बनता है।
खास बातेंः
-केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2017 के आदेश का उल्लेख किया है, जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत और राष्ट्र ध्वज को बढ़ावा देने के लिए नीति बनाए जाने की मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने 25 मई को वंदे मातरम् को राष्ट्रगान की तरह का दर्जा दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
-भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर याचिका में कहा है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम् का अहम योगदान रहा है। देश की आजादी के बाद राष्ट्रगान जन गण मन को को तो प्राथमिकता दी गई लेकिन वंदे मातरम् को भुला दिया गया। वंदे मातरम् के लिए कोई कानून भी नहीं बनाया गया। याचिका में मांग की गई है कि सभी स्कूलों में वंदे मातरम को राष्ट्रगान की तरह बजाया जाना चाहिए।
-याचिका में कहा गया है कि संविधान सभा के चेयरमैन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान पर दिए गए भाषण में वंदे मातरम् और जन गण मन को बराबर का दर्जा देने की बात कही थी। याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश देने की मांग की गई है कि सभी स्कूलों में वंदे मातरम् और राष्ट्रगान को बजाने के लिए वे दिशानिर्देश जारी करें।
-गौरतलब है कि 26 जुलाई, 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट ने और 17 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट अश्विनी उपाध्याय की ऐसी की याचिका खारिज कर चुका है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 51ए यानी मौलिक कर्तव्य के तहत सिर्फ राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का उल्लेख है, इसलिए वंदे मातरम् को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।
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