कांग्रेस नेता राहुल गांधी को वीर सावरकर पर टिप्पणी करना भारी पड़ गया है, इसका महाराष्ट्र से लेकर देश के अन्य हिस्सों में जमकर विरोध हो रहा है. अब हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने भी राहुल गांधी के विवादित बयान को लेकर हमला बोला है। शांता कुमार ने राहुल गांधी को महान क्रांतिकारी वीर सावरकर पर दिए गए बयान को लेकर पूरे देश से माफी मांगने की सलाह दी है। रविवार को एक बयान में शांता कुमार ने कहा कि भारत के महान क्रांतिकारी देशभक्त वीर सावरकर के संबंध में आपत्तिजनक बयान देकर राहुल गांधी ने पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानियों का अपमान किया है। कांग्रेस में समझदार नेता उन्हें सलाह दें और वह पूरे देश से क्षमा याचना करें। शांता कुमार ने कहा यदि राहुल गांधी देश से क्षमा याचना नहीं करते तो उनकी भारत जोड़ो यात्रा भारत अपमान यात्रा बन जायेगी।
राहुल गांधी के आरोप का कोई प्रमाणिक वर्णन नहीं
शांता ने कहा कि राहुल गांधी जिस व्यक्ति के बारे में ऐसा बयान दे रहे हैं उस क्रांतिकारी ने देश की आजादी की लड़ाई में 27 साल जेल में बिताने वाले वीर सावरकर ने 11 वर्ष काला पानी की जेल में बिताये थे। शांता कुमार ने कहा कि अंडेमान में जेल की उस काल कोठरी को देखने का सौभाग्य मिला था। उसे देखकर आंखें बंद करके हाथ जोड़कर उस महान कांतिकारी को प्रणाम किया था। जिसने करीब 10 फीट लंबी व चौड़ी उस अंधेरी कोठरी में करीब 11 वर्ष व्यतीत किए और उसकी दीवारों पर अपनी नई कविता लिखकर उसको याद करके फिर मिटा कर अपने साहित्य का सृजन किया। उन्हें जब अंडेमान ले जाया जा रहा था तो समुद्री जहाज के बाथरूम के नीचे से जैसे तैसे पानी में छलांग लगा दी। 17 किलोमीटर तैरकर जब वह किनारे पहुंचे तो फ्रांस की धरती थी। फ्रांस की सरकार ने उन्हें पकड़कर अंग्रेजों को सौंप दिया। यह विश्व के इतिहास का एकमात्र उदाहरण है कि कोई देश भक्त इस प्रकार समुद्र में तैरकर बाहर निकला हो।शांता ने कहा कि 1857 के हजारों देशभक्तों के उस ऐतिहासिक प्रयास को स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम सिद्ध करने का ऐतिहासिक काम वीर सावरकर ने किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने क्रांतिकारी इतिहास का गहरा अध्ययन किया है और उस पर एक पुस्तक भी लिखी है। अपनी पुस्तक की भूमिका लेने के लिए वह वीर सावरकर को मुंबई में मिले थे। पूरे क्रांतिकारी इतिहास में राहुल गांधी के आरोप का कोई प्रमाणिक वर्णन नहीं है। कई बार सोची समझी योजना के अनुसार क्रांतिकारी ऐसे पत्र लिखते थे। जेल से निकलते थे और फिर गुप्त क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो जाते थे। कई बार क्रांतिकारी आंदोलन को बदनाम करने के लिए भी सरकार इस प्रकार के पत्रों का समाचार पत्रों में जिक्र करती थी।