दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के साथ उत्पात शुरू हो गया। हाथों में तलवार, बड़ी लट्ठ और पत्थरबाजी से आंदोलन का क्रूर रूप सामने आया है। पुलिस की पूरी कोशिश थी कि किसानों को संयमित और तय मार्गों से चलने दिया जाए लेकिन किसानों के भेष में आए लोगों ने उपद्रव खड़ा कर दिया। जिसको लेकर ये आशंका उठने लगी कि गणतंत्र दिवस पर उत्पात करके लालकिले और तिरंगे की अवमानना करनेवाले क्या ये किसान ही हैं?
72वें गणतंत्र दिवस पर किसान के नाम पर सड़कों पर बहुत उत्पात मचाया गया। पुलिस और किसान संगठनों के बीच तय हुए मार्ग को ट्रैक्टर पर सवार लोगों ने तोड़ दिया। सड़क की रेलिंग ढहा दी गईं, नोएडा सीमा पर तलवारें लहराई गईं, पत्थरबाजी शुरू हो गई। इन परिस्थितियों में दिल्ली बेदिलों से घिरी हुई प्रतीत हो रही थी। अन्नदाता के नाम पर प्राण हरनेवाले सड़कों पर थे। जनता जान बचाने के लिए दौड़ रही थी और पुलिस भी आतंकित नजर आई।
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बंट गए किसान
किसान संघर्ष समिति और 41 किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करनेवाली संयुक्त किसान मोर्चा, किसान मजदूर संघर्ष समिति की ट्रैक्टर परेड बेकाबू हो गई। नेता ट्रैकर परेड से गायब थे और लोग आतंक, अवमानना करते बेकाबू घूम रहे थे।
किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि, हम पुलिस के तय रूट से नहीं बल्कि अपने रूट से मार्च निकालेंगे।
जबकि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि उपद्रवी लोग किसान मजदूर संघर्ष समिति के हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने कहा है कि,
हमें पता है किसने अशांति फैलाई है। इनकी पहचान हो गई है। ये राजनीतिक पार्टियों के लोग हैं जो आंदोलन की प्रतिमा को मलिन करना चाहते हैं।इसके अलावा पंजाब की कुछ यूनियन अलग से अपनी ट्रैक्टर रैली निकालने की बात कर रहे थे। किसान मजदूर संघर्ष समिति के नेता सरवनसिंह पंढेर ने कहा था कि, वे पुलिस के बताए मार्ग से अपनी रैली नहीं निकालेंगे।
लाल किले पर हुआ अवमान
टैक्ट्रर रैली के नाम पर उत्पाती लाल किले तक पहुंच गए। वहां उन्होंने अराजक होकर एक धर्म, पार्टी विशेष के झंडे लगा दिये गए। इसे देश के ध्वज का अवमान माना जा रहा है। ट्रैक्टर रैलियों में कई लोग पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को कुचलने की कोशिश करते देखे गए। टैक्टरों पर चढ़े लोगों के हाथों में तलवार, डंडे और पत्थर थे जिसे पुलिस और मीडिया के लोगों पर फेंका गया।
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नेता रहे गायब
किसान आंदोलन के बीच बयानबाजी करते, सरकार से बातचीत करते नजर आनेवाले नेता ट्रैक्टर परेड से गायब रहे। दोपहर बाद जब आंदोलन पूरी तरह से बेकाबू हो गया तो योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत जैसे लोग आरोप लगाते, उत्पात से पल्ला झाड़ते सामने आए। लेकिन ये सभी आंदोलन की भड़की आग को शांत करते नजर नहीं आए।
किसानों की झांकी गायब
किसानों ने ट्रैक्टर परेड के पहले कहा था कि इसमें आंदोलन के बीच जीन किसानों की मृत्यु हुई है और कृषि कानूनों से किसानों पर पड़नेवाले प्रभाव पर झांकियां निकाली जाएंगी। लेकिन उत्पात की आंधी में ये कहीं भी नहीं दिखी। न दावे करनेवाले नेता दिखे और न ही झांकी।