दिल्ली और केंद्र के बीच अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े विवाद के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर उस आरोप को नकार दिया है, जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार के अधिकारी फोन नही उठाते और मीटिंग में शामिल नहीं होते।
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला की ओर से दाखिल हलफ़नामे में कहा गया है कि ऐसी कोई घटना कभी नहीं हुई है। उन्होंने कहा की जांच में इस बात का पता चला कि अधिकारियों द्वारा फोन उठाया जाता है, साथी अधिकारी मीटिंग में भी शामिल होते हैं। हालांकि कुछ ऐसे अवसर रहे, जिसमें अधिकारियों को दिल्ली सरकार द्वारा सौंपे गए कामों की वजह से कुछ मीटिंग में उपस्थित नहीं हो सके। हलफनामे में यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से दाखिल किए गए हलफनामे पर विचार नहीं करना चाहिए। वह भी तब जब जांच में इनमें कोई सच्चाई ना हो।
दरअसल, केंद्र सरकार की तरफ से यह हलफनामा दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे के जवाब के रूप में दाखिल किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार के अधिकारी फोन नहीं उठाते हैं और ना ही वह मीटिंग में शामिल होते हैं। वहीं केंद्र ने 5 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग करते हुए कहा है कि चूंकि दिल्ली बनाम केंद्र मामले में जजों की बेंच का फैसला अलग-अलग लेकिन सहमति वाला दिया जा चुका है। इसलिए इस मुद्दे को उससे बड़ी बेंच द्वारा सुना जाना चाहिए।
सिसोदिया ने याचिका दायर कही है ये बात
इस मामले में दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि इस साल की शुरुआत में उपराज्यपाल वीके सक्सेना की नियुक्ति के साथ समस्या और भी विकट हो गई है। वे दिल्ली सरकार के कामकाम को पूरे तरीके से बाधित कर रहे हैं।
नौकरशाहों पर उठाई उंगली
हलफनामे में कहा गया है कि मंत्रियों के फोन करने के बावजूद नौकरशाहों ने बैठकों में भाग लेना बंद कर दिया। इतना ही नही अधिकारियों ने मंत्रियों के फोन उठाने बंद कर दिए। हलफनामे में कहा गया है कि अधिकारी या तो देरी करते थे या मंत्रियों के विभागों तक फ़ाइल ही नही भेजते थे। अधिकारियों ने मंत्रियों के आदेशों और निर्देशों की भी अवहेलना की और चुनी हुई सरकार के साथ उदासीनता के साथ व्यवहार किया। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस साल की शुरुआत में उपराज्यपाल वीके सक्सेना की नियुक्ति के साथ समस्या और भी विकट हो गई है। उपराज्यपाल उन अफसरों को दंडित कर रहे हैं, जो चुनी हुई सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं।
कोर्ट ने मामले को 5 जजों की संविधान बेंच को किया रेफर
6 मई को कोर्ट ने इस मामले को 5 जजों की संविधान बेंच को रेफर कर दिया था। दिल्ली सरकार अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण की मांग कर रही है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि यह मसला 2021 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम में हुए संशोधन से भी जुड़ा है। केंद्र ने दोनों मसलों पर साथ सुनवाई करने की मांग की थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले को संविधान पीठ को सुनवाई के लिए रेफर करने की मांग की थी।
दो बेंच ने सुनाए अलग-अलग फैसले
उल्लेखनीय है कि 14 फरवरी, 2019 को सर्वोोच्च न्यायालय ने दिल्ली में अफसरों पर नियंत्रण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने विभाजित फैसला सुनाया था। जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया था, उसके बाद इस मसले पर विचार करने के लिए बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया।