सहमति से संबंध की आयु हो सकती है 16 वर्ष? केंद्र सरकार ने किया स्पष्ट

सहमति से यौन संबंध बनाने की आयु को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष किए जाने के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है।

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केन्द्र सरकार सहमति से यौन संबंध बनाने की आयु को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष किए जाने के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने 21 दिसंबर को राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में इसकी जानकारी दी। प्रश्न में पूछा गया था कि क्या सरकार किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों के अपराध ठहराए जाने की स्थिति को रोकने के लिए अधिनियम बदलाव के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इसके उत्तर में कहा गया कि इस तरह का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

बच्चों पर यौन अपराध करने वालों पर कठोर दंड का प्रावधान
इरानी ने कहा कि भारत सरकार पोस्को अधिनियम 2012 बच्चों को यौन दुरुपयोग और यौन अपराधों के संरक्षण प्रदान करने के लिए पारित किया गया था। इस अधिनियम में बालक को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। पोस्को अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड निर्धारित करता है। इस अधिनियम में अपराधियों के मन में भय पैदा करने और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने की दृष्टि से बच्चों पर यौन अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड सहित और भी अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने के लिए 2019 में संशोधन किया गया था।

उन्होंने आगे कहा, “किसी बालक द्वारा इस अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध किए जाने की स्थिति में, उक्त बालक की सुनवाई किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अंतर्गत की जाएगी। यदि किसी विशेष न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के दौरान यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह व्यक्ति बालक है या नहीं तो इसका निर्धारण विशेष न्यायालय द्वारा उस व्यक्ति आयु के बारे में संतोष कर लेने के पश्चात किया जाएगा।”

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 के तहत पंजीकृत बाल विवाह के मामलों की संख्या में पिछले वर्षों में इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019, 2020 एवं 2021 में दर्ज बाल विवाह के मामलों की संख्या क्रमश: 523, 785 एवं 1050 है।

उत्तर में कहा गया है कि मामलों की अधिक रिपोर्टिंग बाल विवाह के मामलों की संख्या में वृद्धि को आवश्यक रूप मे नहीं दर्शाती है, किंतु मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) महिला हेल्पलाइन (181) और चाइल्डलाइन (2098) जैसी पहलों और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा कानून के बेहतर प्रवर्तन के कारण नागरिकों में ऐसी घटनाएं सूचित करने की बढ़ती जागरुकता के कारण ऐसा हो सकता है।

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