चीनी सेना को मानसिक दिक्कत, ये है कारण

शंघाई में स्थित नेवल मेडिकल यूनिवर्सिटी ने हाल ही में एक सर्वे किया, जिसमें पाया गया कि चीनी सैनिक डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।

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ड्रैगन अपनी सेना के बल पर लगातार विस्तारवादी नीति पर काम कर रहा है, लेकिन यह नीति उसी पर भारी पड़ रही है। जहां एक ओर अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन को मुंह की खानी पड़ी, वहीं दूसरी ओर ताइवान में भी अमेरिका के सामने आने के बाद उसकी दाल नहीं गल रही है। इन सबके बीच चीन के सामने एक और बड़ी समस्या आ गई है। यह समस्या किसी देश को लेकर नहीं, बल्कि उसकी सेना को लेकर है। चीनी सैनिक इस समय मनोरोग का सामना कर रहे हैं। इसका खुलासा शंघाई में स्थित नेवल मेडिकल युनिवर्सिटी के एक सर्वे में हुआ है। इस खुलासे के बाद अब ऐसा लग रहा है की चीनी सेना में जवानों की नहीं, बल्कि मनोरोगियों की भर्ती हो रही है।

चीन में 20 प्रतिशत सैनिक डिप्रेशन का शिकार 
अरुणाचल प्रदेश की तवांग इलाके में भारतीय जवानों के हाथों बुरी तरह पिटने के बाद चीनी सैनिकों ने मानसिक संतुलन खो दिया है। वह इतने डरे सहमे हैं कि उनको पता नहीं चल रहा की उन्हें करना क्या है? चीनी सैनिकों की मन:स्थिति को जानने के लिए नेवल मेडिकल युनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया। यह शंघाई चीन में स्थित एक सार्वजनिक यूनिवर्सिटी है, जिसे पीएलए सेकंड मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी (एसएमएमयू) के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी स्थापना सितंबर, 1994 में की गई थी। यह राज्य परियोजना 211 द्वारा समर्थित एक राष्ट्रीय प्रमुख विश्वविद्यालय है। इस सर्वे में चीन की पनडुब्बियों में तैनात 580 सैनिकों को शामिल किया गया था। जिसमें 107 अधिकारी और सैनिक तनावग्रस्त पाए गए। ऐसे में चीन के पांच सैनिक में एक सैनिक डिप्रेशन का शिकार हैं। इस तरह देखा जाए तो चीन में 20 प्रतिशत सैनिक डिप्रेशन का शिकार हैं।

तनाव कम करने के लिए अपना रहे यह तरीका
चीनी सैनिकों का बिगड़ रहा मानसिक संतुलन को लेकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी चिंतित हैं। चीनी सैनिक तनाव से कैसे बाहर आएं इसको लेकर नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। अब पीएलए की तरफ से अपने सैनिकों की मेंटल सर्विस काउंसलिंग शुरू की गई है। जिसमें मानसिक सेहत को लेकर उनसे बात की जा रही है। इसके अलावा उन्हें तनाव से बाहर लाने के लिए कोर्स की शुरुआत की गई है, ताकि वह इससे बाहर आए और युद्ध के लिए खुद को तैयार कर सकें।

भारतीय जवानों द्वारा पिटाई से डरे चीनी सैनिक
भारत और चीन के बीच एक वास्तविक सीमा रेखा (एलएसी) है। जहां भारत और चीन के जवान अपनी-अपनी सीमा पर तैनात रहते हैं, लेकिन चीन इसे मानने को तैयार नहीं है। चीन अक्सर कुछ ऐसा कर बैठता है, जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ता है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग के यांगत्से इलाके में नौ दिसंबर को एक बार फिर चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की कोशिश की। चीन के मंसूबे पर भारतीय जवानों ने पानी फेर दिया। इस बीच भारत और चीन की सेना के बीच झड़प हो गई, जिसमें भारत के वीर जवानों द्वारा चीनी सैनिकों की जमकर पिटाई कर दी गई। जिसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें देखा जा सकता है कि भारत के वीर जवान चीनी सैनिकों को घेर का किस तरह उन पर लाठियां बरसा रहे हैं। भारतीय जवानों के सामने चीनी सैनिकों के हौसले पस्त हो गए और उन्हें वापस अपनी पोस्ट में जाने पर मजबूर होना पड़ा।
इससे पहले भी चीनी सैनिकों ने लद्दाख की गलवान घाटी पर जून, 2020 में इसी तरह की हिमाकत की थी, जिसका हमारे वीर जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। हालांकि, इस झड़प में हमने भी अपने 20 जवानों को खो दिए थे, लेकिन चीन को भी भारी नुकसान हुआ था। गलवान घाटी पर भी चीनी सैनिकों को उल्टे पांव भागने पड़े थे।

चीन में सेना की भर्ती अनिवार्य
चीन में हमारे देश की तरह जवान वीरता और देश भक्ति की भावना लेकर सेना में नहीं जाते हैं, बल्कि उन्हें जबरदस्ती सेना में भेजा जाता है। वहां पर सेना में सेवा देना हर जवान के लिए अनिवार्य है। यदि कोई जवान समय से पहले उसे छोड़ता है तो उसके लिए उसको कड़ी सजा दी जाती है। इसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि वहां सेना में जवान अपनी वीरता दिखाने नहीं, बल्कि उन्हें मजबूरी में आना पड़ता है। इस कारण उनमें साहस और धैर्य की कमी होती है।

आखिर क्या है डिप्रेशन की वजह?
देखा जाए तो चीन में जवानों को जबरदस्ती सेना में भर्ती कर दिया जाता है। इनमें से कई जवानों का सेना में आने का मन भी नहीं होता होगा। स्वभाविक है जब कोई बिना मन के काम करेगा तो उसे डर तो सताएगा ही। ऐसा ही कुछ हाल चीन के सैनिकों का है। उन्हें हर पल युद्ध का डर सताता रहता है। क्योंकि कुछ समय से जहां एक ओर ताइवान को लेकर अमेरिका से चीन की ठनी है, तो वहीं दूसरी ओर एलएसी पर भारत के जवान चीन को जवाब देने के लिए हर पल तैयार रहते हैं। मिडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चीनी सैनिकों को ऊंचे स्थानों पर रहने से भी डर लगता है। एलएसी पर जहां उन्हें ऊंचे स्थानों पर तैनात किया जाता है, वहीं वहां पर तापमान भी माइनस 05 से माइनस 15 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। इसे सुनकर ही चीनी सैनिकों के हाथ-पांव ठंडे पढ़ जाते हैं। ऊपर से मुश्किल ट्रेनिंग यह सब दबाव वह सह नहीं पा रहे हैं। जिसके चलते वह डिंप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।

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