फडणवीस-अजीत पवार की शपथ में था शरद पवार का हाथ! भाजपा नेता ने बताई वह राज की बात

महाराष्ट्र में चौबीस घंटे में सरकार गिरने की घटना इतिहास में सदा याद की जाएगी।

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महाराष्ट्र के इतिहास में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की शपथ विधि पर जब भी चर्चा होती है, भाजपा और शिवसेना गठबंधन के नेता देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार द्वारा वर्ष 2019 में प्रात:काल में ली गई शपथ विधि की चर्चा अवश्य होती है। अब उस गठबंधन सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने यह दावा किया है कि, इस गठबंधन सरकार के गठन और उसे गिराने की पीछे शरद पवार ही थे।

गठबंधन को शरद पवार की मंजूरी
नागपुर में महाराष्ट्र का शीतकालीन विधान सभा सत्र चल रहा है। इस बीच पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा में एक नेता ने आश्चर्यजनक दावे किये। उन्होंने कहा कि, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की गठबंधन सरकार के लिए शरद पवार ने ही मान्यता दी थी। विधान सभा चुनाव परिणाम आने के बाद उद्धव ठाकरे ने जिद पकड़ ली थी। जिसके बाद हमने (भाजपा नेताओं ने) पर्याय पर विचार करना शुरू कर दिया। इस बीच शरद पवार ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की। वहीं पर भाजपा-राष्ट्रवादी युति पर चर्चा हुई और शरद पवार ने भाजपा को समर्थन देना स्वीकार किया।

बार्गेनिंग पॉवर के खेल
दिल्ली में गठबंधन को अंतिम रूप मिलने के दो-तीन दिन बाद शरद पवार ने अजीत पवार को शपथ लेने कि लिए राजभवन भेजा। उन्होंने भाजपा नेता को फोन करके बताया कि, अजीत पवार को भेज रहे हैं, उनसे आगे की चर्चा कर लो। इसके बाद 23 नवंबर, 2019 को भाजपा-एनसीपी गठबंधन सरकार की शपथ विधि हुई। लेकिन शरद पवार के मन में कुछ और ही था। उन्होंने पांसे ही घुमा दिये, जिसके कारण नए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को त्यागपत्र देना पड़ा। इसमें पार्टी और नेताओं की प्रचंड बदनामी हुई। इस नेता ने दावा किये कि, इस शपथ विधि से शरद पवार और उनकी एनसीपी की बार्गेनिंग पॉवर बढ़ गई। इस नेता ने आरोप लगाया कि, इस घटना से एनसीपी को सर्वाधिक मंत्रीपद, मलाईदार विभाग और सरकार पर नियंत्रण की प्राप्ति हुई, जो भाजपा के साथ गठबंधन में नहीं मिलता।

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अमित शाह से मिली डांट
भाजपा नेता कहा कि, हमारा संख्याबल 105 पर आकर थम गया, जिससे शिवसेना की बार्गेनिंग पॉवर बढ़ गई थी। इसके बाद भी हमें अपेक्षा नहीं थी कि, उद्धव ठाकरे इतना धक्कादायक निर्णय लेंगे। हम चिंता मुक्त थे, जबकि चुनाव परिणाम आने के बाद शाम को ही संजय राऊत ने पत्रकार परिषद में शिवसेना को ढाई वर्ष का मुख्यमंत्री पद देने का बयान दे दिया। उसी समय दिल्ली से अमित शाह ने हमें आगाह किया कि, उद्धव ठाकरे कुछ अलग करने के प्रयत्न में हैं। परंतु, हमने आश्वस्त किया कि, हमें उद्धव ठाकरे पर पूर्ण विश्वास है। परंतु, अमित शाह की बात सच साबित हुई, जिसके कारण हमें डांट भी सुननी पड़ी।

कैसे सफल हुआ ऑपरेशन कमल
शिवसेना भाजपा युति काल से ही एकनाथ शिंदे और हमारा संबंध अच्छा था। महाविकास आघाड़ी में शिंदे को मुख्यमंत्री पद मिलेगा ऐसी चर्चा थी। लेकिन शरद पवार ने उनका पत्ता काट दिया। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हो गए। इससे शिंदे कुछ नाराज थे। इसी नाराजगी को हमने साध लिया और रणनीति पर काम करना शुरू किया। इसकी किसी नेता को किंचित खबर नहीं थी। गटनेता हमारे साथ होने के कारण हमें मात्र 29 विधायकों की आवश्यकता थी। इसे देखते हुए हमने जो सोचा था, उससे अधिक विधायक तोड़ने में हमें यश मिला। कौन सा विधायक टूट सकता है, इसका अनुमान ले लिया था, परंतु हम क्या करने जा रहे हैं, इसका अनुमान किसी नेता को नहीं होने दिया। अब दो तृतियांश शिवसेना विधायक शिंदे के साथ होने से कोई कानूनी रोड़ा नहीं अटकेगा।

शिंदे को ऐसे मिला मुख्यमंत्री पद
गद्दारी करनेवालों को सबक सिखाओ, इसी उद्देश्य से हमने अवैध सरकार को गिराया। बदला पूर्ण हुआ लेकिन, अपने राजनीतिक जीवन को दांव पर लगाकर बाहर आए विधायकों को न्याय मिले इस हेतु एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया। इस विषय में जानकारी मात्र एकनाथ शिंदे को ही थी। इस पूरे ऑपरेशन में अमित शाह मार्गदर्शक की भूमिका में थे।

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