राकांपा अध्यक्ष शरद पवार मराठा आरक्षण के लिए प्रतिब्ध है। सरकार ने इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिक दायर की है। जबकि कृषि संबंधी विधेयकों पर उन्होंने राज्यसभा के हंगामा करनेवाले सांसदों का समर्थन किया है।
शरद पवार ने राज्य और देश के दो बड़े मुद्दों पर अपना विचार रखा। पवार ने मराठा अरक्षण को लेकर सरकार की भूमिका को स्पष्ट किया तो दूसरी तरफ कृषि संबंधी विधेयकों के राज्यसभा में पेश करने और उसके बाद हुए विपक्ष के हंगामे पर बोले। शरद पवार ने विपक्ष के हंगामे को याग्य़ ठहराया है साथ ही जिस जल्दबाजी के साथ विधेयक पारित किये गए उसे लेकर प्रश्न भी उठाए।
दिल्ली में आंदोलन, मुंबई से समर्थन
संसद भवन के बाहर विपक्ष के निलंबित सांसदों का आंदोलन चल रहा है। उन्हें मुबंई से समर्थन
देने की घोषणा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि
सांसदों का हंगामा योग्य था। इन सांसदों के समर्थन में वे आज उपवास करेंगे।
मराठा आरक्षण को प्रतिबद्ध
मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सरकार मराठा समाज के साथ है। शरद पवार ने मुंबई में अपनी प्रेस
कॉन्फ्रेंन्स में बताया कि सर्वोच्च न्यायालय में सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। इस बीच राज्यभर में मराठा समाज आंदोलन कर रहा है। न्यायालय की बात करें तो महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की वृह्द पीठ के समक्ष आवेदन दायर कर नौकरियों एवं शिक्षा में मराठा आरक्षण लागू करने पर लगी शीर्ष अदालत की रोक को हटाने का अनुरोध किया है।
इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिये गए मराठा आरक्षण पर रोक लगाते हुए मामले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया था। इस संदर्भ में शीर्ष अदालत ने 9 सितंबर के अपने एक अंतरिम आदेश में कहा है कि साल 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमीशन के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। तीन जजों की बेंच ने इस मामले को विचार के लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा है। अब संविधान पीठ मराठा आरक्षण की वैधता पर विचार करेगी।
क्या है मामला?
बता दें कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) अधिनियम, 2018 को नौकरियों और प्रवेश के लिए महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए लागू किया गया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले साल जून में कानून को बरकरार रखते हुए कहा कि 16 प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं है। उसने कहा कि रोजगार में आरक्षण 12 प्रतिशत और एडमीशन में 13 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। बाद में कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब उस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से अगस्त में अदालत को जानकारी दी गई थी कि कोरोना महामारी के चलते राज्य सरकार ने पहले ही 15 सितंबर तक नई भर्तियां न करने का फैसला किया है।