हाथ से निकले ‘तांबे’, विधान परिषद निर्वाचन के पहले मतभेदों का महा-विकास

राज्य में विधान परिषद की शिक्षक आरक्षित सीटों के लिए निर्वाचन होना है। इसके लिए सभी दल अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। यह चुनाव भाजपा के लिए अधिक आवश्यक है।

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महाराष्ट्र विधान परिषद की स्नातक और शिक्षक की पांच सीटों के चुनाव में महाविकास आघाड़ी में मतभेद की चिंगारी भड़कती हुई दिखाई दे रही है। कांग्रेस के मौजूदा एमएलसी डॉ.सुधीर तांबे और उनके बेटे सत्यजीत तांबे के रुख ने महाविकास आघाड़ी को फजीहत में डाल दिया है। कांग्रेस जहां अंदरूनी कलह को लेकर परेशान हो गई है तो वहीं शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कड़ा रुख अख्तियार किया है।

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, तांबे परिवार द्वारा अचानक भूमिका बदलने को लेकर भ्रमित हैं और उन्होंने पिता-पुत्र के खिलाफ संगठनात्मक कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी तांबे परिवार को लेकर शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। राकांपा नेता व नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार का कहना है कि नासिक की बदलती परिस्थिति की जानकारी कांग्रेस को पहले ही दे दी गई थी, इसके बाद भी कांग्रेस ने कोई सतर्कता नहीं दिखाई। इस मामले को लेकर शिवसेना के मुखपत्र ”सामना” की संपादकीय में आघाड़ी को लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। सीधा सवाल पूछा गया है कि महाविकास आघाड़ी में शामिल दलों ने इस चुनाव को लेकर साथ बैठकर विस्तृत चर्चा चर्चा करके क्या प्लानिंग और रणनीति बनाई? सामना ने लिखा है कि डॉ. सुधीर तांबे के पास पार्टी का ”एबी” फार्म होते हुए भी उन्होंने नामांकन नहीं भरा। लेकिन उसी वक्त उनके बेटे सत्यजीत तांबे ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। बेटे को विधायक बनाने की उदार मंशा से डॉ.तांबे ने यह चाल चली और इसके पीछे भाजपा का पेंच है।

तांबे-थोरात का संबंध
सत्यजीत तांबे कांग्रेस नेता बालासाहेब थोरात के भांजे हैं। थोरात उनके मामा हैं। सत्यजीत तांबे महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। उनकी गिनती राहुल गांधी के करीबीयों में होती है। पिछले चुनाव में जब राहुल गांधी प्रचार करने अहमदनगर आए थे, तब राहुल गांधी सत्यजीत तांबे के ही घर पर ठहरे थे। इतना करीबी नाता फिर भी ऐसा इंसान केवल एक विधायकी के लिए भाजपा की चाल में फंस जाए, यह समझ से परे है।

सामना का कांग्रेस पर हमला
सामना के अनुसार अमरावती में कांग्रेस के पास अपना उम्मीदवार नहीं होने पर भी उस सीट के लिए जिद करके लड़ना, वास्तव में इसे क्या कहा जाए? आखिर में शिवसेना के जिला प्रमुख लिंगाडे को कांग्रेस पार्टी में शामिल करके उम्मीदवारी की हल्दी लगानी पड़ी। अगर यह सीट शिवसेना के लिए छोड़ दी जाती तो लिंगाडे पूरी तैयारी के साथ चुनाव लड़ते। नागपुर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस ने शिवसेना के लिए छोड़ा था लेकिन वहां अब कांग्रेस और राष्ट्रवादी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे पेंचिदी तस्वीर खड़ी हो गई है। महाविकास आघाड़ी की ढिलाई भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। हालांकि इस पर यह भी कहा गया है कि सत्ता और केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके चाणक्य बनने की कोशिश की जा रही है

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