वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में रखने का मामलाः सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से इस तिथि तक मांगा जवाब

सुनवाई के दौरान 2फरवरी को एक याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

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सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक रेप को अपराध में दायरे में रखने के मसले पर केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा कोर्ट ने सभी पक्षकारों को 2 मार्च तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट 14 मार्च से अंतिम सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 16 सितंबर, 2022 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। न्यायालय को ये तय करना है कि पति का पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाना रेप है कि नहीं। वैवाहिक रेप के मामले पर 11 मई, 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट ने विभाजित फैसला दिया था। जस्टिस राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक करार दिया था, लेकिन जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे सही करार दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा।

याचिकाकर्ता ने की है यह मांग
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि उसका ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाया जाए या रखा जाए। केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशविरा के बाद ही तय करेगी। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है, तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करनेवाला है।

शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन
सुनवाई के दौरान 2फरवरी को एक याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपवाद संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है। उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपवाद दो किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। ये अपवाद असंवैधानिक है, क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है।

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हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।

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