देश में इन दिनों हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस को लेकर राजनीति हो रही है। बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक विपक्षी नेता इसे दलित विरोधी बता रहे हैं। पहले बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर प्रसाद ने रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी की, इस पर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई, लेकिन राजद नेता पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। अब समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस की चौपाइयों की मनमाफिक व्याख्या करके दलित पिछड़ों का अपमान बताया है। हालांकि, उनकी ही पार्टी ने मौर्य के बयान से किनारा कर लिया है। सवाल यह उठता है कि आखिर हिंदू धर्म रामचरितमानस पर ही विपक्ष राजनीति क्यों कर रहा है?
विपक्ष इसे बना रहा है अपना हथियार
माना जा रहा है कि 2024 में भगवान राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जायेगा। इस मंदिर का भावनात्मक और राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है। इसी डर के कारण विपक्षी दल अब हिंदू ग्रंथों पर अनाब-सनाब बोलने लगे हैं। हिंदू के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस को अपना हथियार बना रहे हैं।
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भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्षी दलों की तैयारी
इस साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2024 में लोकसभा का चुनावी दंगल होगा। भाजपा ने अपने एजेंडे में सामाजिक और समरसता में पसमांदा मुस्लिम की पीड़ा उठाकर मुसलमानों को भी साथ जोड़ने की मुहिम शुरू कर दी है। श्री काशी विश्वनाथ धाम और महाकाल लोक बनाने के बाद अब श्री बांके बिहारी कॉरिडोर की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। विपक्षी दल इसकी काट रामचरित मानस की चौपाइयों को बनाना चाहते हैं, इसलिए वह इन चौपाइयों को दलित विरोधी बता रहे हैं।
धर्मगुरुओं ने कहा, मानस नैतिक मूल्यों का ग्रंथ
स्वामी नरेंद्र आनंद ने कहा है कि स्वामी प्रसाद का कृत्य अक्षम्य है। वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। ऐसे व्यक्ति को पागलखाने में डाल देना चाहिए। पदम विभूषण तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य ने कहा कि पागलपन का कोई प्रमाण नहीं होता।