भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी के पास रुद्र गनशिप से टैंक-रोधी गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) ‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ दागकर सफल परीक्षण किया है। यह वही इलाका है, जहां से 2020 में भारत और चीन के सैनिकों में घातक खूनी संघर्ष हुआ था। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। इसी घटना के बाद से भारत और चीन के बीच उत्तरी सीमा पर गतिरोध ज्यादा बढ़ा है, जिसका समाधान निकालने के राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य प्रयास चल रहे हैं।
स्वदेश में ही विकसित हेलीकॉप्टर से लॉन्च की जाने वाली टैंक-रोधी मार्गदर्शित मिसाइल ‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ विकास परीक्षण पूरे होने के बाद अब सीधे और शीर्ष हमले के मोड में है, जो नई सुविधाओं के साथ उन्नत है। भारत ने पिछले साल 11-12 अप्रैल को लगातार दो दिन लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) से एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ का परीक्षण किया था। इस मिसाइल ने परीक्षण में एक नकली टैंक लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाकर नष्ट कर दिया था। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के वैज्ञानिकों की टीमों ने इन ट्रायल्स को मान्य किया।
सबसे उन्नत टैंक रोधी हथियार
अब भारतीय सेना ने उपयोगकर्ता प्रमाणीकरण ट्रायल्स के हिस्से के रूप में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी के पास रुद्र गनशिप से टैंक-रोधी गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) ‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ दागकर सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण रुद्र हेलीकॉप्टर से किया गया और मिसाइल ने नकली टैंक लक्ष्य को सफलतापूर्वक निशाना बनाया। मिसाइल को एक इन्फ्रारेड इमेजिंग सीकर (आईआईआर) से निर्देशित किया गया, जो लॉन्च से पहले लॉक ऑन मोड में काम करता है। यह दुनिया के सबसे उन्नत टैंक रोधी हथियारों में से एक है। यह परीक्षण सेना के वरिष्ठ कमांडरों और डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की मौजूदगी में किया गया।
ध्रुवस्त्र हेलिना की विशेषता
‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ तीसरी पीढ़ी की फायर-एंड-फॉरगेट क्लास एटीजीएम है जो स्वदेशी उन्नत लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) पर लगाई जानी है। इसकी न्यूनतम सीमा 500 मीटर और अधिकतम सीमा 7 किलोमीटर है। हेलीकॉप्टर से लॉन्च की जाने वाली नाग मिसाइल की रेंज बढ़ाकर इसे ‘ध्रुवस्त्र हेलिना’ का नाम दिया गया है। इसे एचएएल के रुद्र और लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों पर ट्विन-ट्यूब स्टब विंग-माउंटेड लॉन्चर से लॉन्च किया जाना है। उपयोगकर्ता परीक्षण पूरे होने के बाद उत्पादन का रास्ता साफ होते ही सशस्त्र बलों को इस्तेमाल करने के लिए यह एटीजीएम सौंप दी जाएगी।हालांकि, अभी मिसाइल की लागत का अनुमान लगाया जाना बाकी है, फिर भी प्रत्येक मिसाइल की लागत एक करोड़ रुपये से कम होने की उम्मीद है। शुरुआत में लगभग 500 मिसाइलों और 40 लॉन्चरों की आवश्यकता होगी।