अग्निपथ योजना पर कोई आँच नहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिया ऐसा आदेश

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दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज (सोमवार) केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। बेंच ने 15 दिसंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस केस की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि अग्निवीर का कैडर बिल्कुल अलग है और भारतीय सेना की दी गई उनकी चार साल की सेवा को रेगुलर सर्विस नहीं माना जाएगा। चार साल पूरा होने के बाद अगर कोई अग्निवीर सेना में ज्वाइन करता है तो उसकी नियुक्ति नई नियुक्ति मानी जाएगी। उसका कैडर सिपाही कैडर से नीचे होगा। अग्निवीर के तौर पर शामिल करने के पीछे तर्क यह है कि वह बेसिक ट्रेनिंग लेता है और अगर सेना में सिपाही के पद पर नियुक्त होता है तो उनकी ट्रेनिंग अग्निवीर से उच्च स्तर की होगी। दस-पन्द्रह साल के बाद कोई भी सिपाही ऐसा नहीं होगा जो अग्निवीर नहीं रहा हो। केंद्र की ओर से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने यह पक्ष रखा था।

दरअसल हाई कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि जब अग्निवीर और सिपाही का काम एक ही किस्म का होगा तो एक काम होने के बावजूद अग्निवीरों का वेतन कम क्यों होगा। एएसजी ऐश्वर्या ने कहा था कि अग्निवीरों की जिम्मेदारी सिपाही की तरह नहीं होगी। उन्हें सिपाही को सैल्यूट करना होगा। इस पर जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्र से 75 फीसदी अग्निवीरों के भविष्य को लेकर योजनाओं के बारे में पूछा था जो चार साल पूरा करने के बाद सेना से बाहर हो जाएंगे। भाटी ने कहा था कि केंद्र सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में अग्निवीरों के लिए आरक्षण की योजना बनाई है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई को इस संबंध में अपने पास और दूसरे राज्यों के हाई कोर्ट में लंबित केस दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट पहले से भारतीय नौसेना के उस विज्ञापन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अभ्यर्थियों को 12वीं में मिले मार्क्स कट-ऑफ बढ़ाकर चयन करने की बात कही थी। अग्निपथ योजना को लेकर एयर फोर्स में चयनित बीस अभ्यर्थियों ने भी हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अग्निपथ योजना को लेकर तीन याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

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