संघ प्रमुख ने बताया- मानवता का का क्या है सहज धर्म!

संघ प्रमुख ने कहा कि संकट के समय किसी न किसी को खड़ा होना पड़ता है। जब समाज संकट में होता है तो समाज में कुछ न कुछ करने वाले लोग भी होते हैं।

161

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत का कहना है कि स्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता। सेवा का धर्म गहन है लेकिन यह मानवता का सहज धर्म है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनकल्याण समिति, जनकल्याण सेवा फाउंडेशन और डॉ. हेडगेवार स्मारक सेवा निधि संस्था के द्वारा पुणे में संयुक्त रूप से बनाए गए ‘सेवा भवन’ का उद्घाटन करते हुए संघ प्रमुख ने यह बात कही।

अपने वक्तव्य में संघ प्रमुख ने कहा कि संकट के समय किसी न किसी को खड़ा होना पड़ता है। जब समाज संकट में होता है तो समाज में कुछ न कुछ करने वाले लोग भी होते हैं। संघ की प्रेरणा से पूरे देश में अनगिनत सेवा कार्य चल रहे हैं और जनकल्याण समिति का कार्य उनमें से एक है और श्रेष्ठ है।

समाज सेवा में न हो अहंकार
संघ प्रमुख ने कहा कि समाज की सेवा करते हुए यह अहंकार नहीं होना चाहिए कि हमने यह किया। समाज दिल खोलकर देता है. लेकिन समाज को पता चलना चाहिए कि ये लोग विश्वसनीय हैं। सेवा शब्द भारतीय है, जबकि सर्विस शब्द का तात्पर्य मुआवजे की अपेक्षा से है।उन्होंने कहा कि सेवा मजबूरी नहीं है और न ही इसे भय से किया जा सकता है। सेवा हमारी प्रवृत्ति है। मनुष्य का अर्थ ही संवेदना होता है। यह अस्तित्व की एकता का रहस्य है। यह एक आध्यात्मिक लेकिन वास्तविक सत्य है।

‘अहर्निशं सेवामहे’ का लोकार्पण
इस अवसर पर रा. स्व. संघ के पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक सुरेश उर्फ नाना जाधव, ‘जनकल्याण समिति’ के प्रांत अध्यक्ष डॉ. रवींद्र सातालकर, ‘जनकल्याण सेवा फाउंडेशन’ के निदेशक महेश लेले और ‘डॉक्टर हेडगेवार स्मारक सेवा निधि’ के कोषाध्यक्ष माधव (अभय) माटे मंच पर उपस्थित थे। संघ प्रमुख ने जनकल्याण समिति की 50 वर्ष की यात्रा की समीक्षा करने वाली पुस्तक ‘अहर्निशं सेवामहे’ का लोकार्पण भी किया। मंच हरिओम काका मालशे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.