होलिका दहन भगवान की आराधना का पर्व है। इसलिए इसमें कंडों का उपयोग कर ही होलिका दहन किया जाना चाहिए। धमतरी शहर के पंडित ने कहा कि कंडों से होली जलाकर ही होलिका दहन किया जाता है। बदलते समय के साथ लोग लकड़ी, पालिथीन जैसे अन्य वस्तुओं को भी होलिका दहन का माध्यम बनाने लगे हैं, जो कि सही नहीं है। शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के लिए कंडों का ही उपयोग किया जाए। पुरातन काल से यह परंपरा चली आ रही है।
सनातन धर्म में है इसका उल्लेख
विप्र विद्वत परिषद के अध्यक्ष पंडित अशोक शास्त्री ने कहा कि देश में पहले से ही होलिका दहन होता आ रहा है। सनातन धर्म में इसका उल्लेख है। यह हमारी सनातन संस्कृति है। गांव में कंडे से ही होलिका दहन की परंपरा रही है। पहले कंडे से ही होलिका का दहन होता था। हम औद्योगिकरण की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारी जो सनातन संस्कृति है उसे पूर्ण किया जाना चाहिए। पूरा विश्व भारत देश को गुरु के रूप में देखता है। हमारी सनातन संस्कृति को बचाए रखने के लिए कंडे से होलिका दहन किया जाना चाहिए।
हर पर्व देश की संस्कृति को बांधे रखने का देते हैं संदेश
पंडित चिंतामणी त्रिपाठी ने कहा कि भारत देश के हर पर्व देश की संस्कृति को बांधे रखने का संदेश देते हैं। भारतीय त्योहार मौसम के अनुरूप हैं। यज्ञ-हवन जैसे पवित्र कार्य हमारे चारों ओर के वातावरण को शुद्ध करते हैं। होलिका दहन भी उन्हीं में से एक है। कंडों से होलिका दहन किया जाना शास्त्र के अनुकूल है। इससे हमारा वातावरण शुद्ध होता है। अधिक से अधिक मात्रा में कंडों का उपयोग कर होलिका दहन किया जाना चाहिए।विप्र विद्वत परिषद के सदस्य पंडित राजकुमार तिवारी ने कहा कि देश में पहले से ही होलिका दहन होता आ रहा है। सनातन धर्म में इसका उल्लेख है। यह हमारी सनातन संस्कृति है। गांव में कंडे से ही होलिका दहन की परंपरा रही है। पहले कंडे से ही होलिका का दहन होता था। हमारी सनातन संस्कृति को बचाए रखने के लिए कंडे से होलिका दहन किया जाना चाहिए।
सनातनी संस्कृति का करें सम्मान
विप्र विद्वत परिषद के पूर्व अध्यक्ष पंडित होमन शास्त्री ने कहा कि ने कहा कि हम औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारी जो सनातन संस्कृति है, उसे पूर्ण किया जाना चाहिए। पूरा विश्व भारत देश को गुरु के रूप में देखता है। हमारी सनातन संस्कृति को बचाए रखने के लिए कंडे से होलिका दहन किया जाना चाहिए। एकता के साथ हम त्योहार मनाएं।
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कंडों से होलिका दहन इसलिए है जरुरी
पंडित राजेंद्र चतुर्वेदी ने कहा कि लकड़ी की बजाय कंडों से होलिका दहन करने से तुलनात्मक रूप से कम प्रदूषण होता है। यह बात हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले ही पता कर ली थी, यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पुरातन काल से कंडों से ही होलिका दहन होता आ रहा है। होलिका दहन कंडे से ही किया जाना चाहिए। पंडित नारायण दुबे ने कहा कि कंडों से होलिका दहन करना उचित है, क्योंकि इसके लिए पेड़ों को काटना नहीं पड़ता। कंडों से होलिका दहन करने से पेड़ों की सुरक्षा होगी। पहले के लगाए हुए पेड़ आज काटे जा रहे हैं जो कि सही नहीं है। इससे पौधों पौधों का संरक्षण होगा।