गोंदिया। वो रो रहा था, हाथ जोड़े बिनती कर रहा था और उसके साहब खिड़की की पीछे खड़े समझाते रहे। उसकी पीड़ा पिता को खोने की थी, मां और भाई के कोरोना ग्रसित होने की थी। उसके इस रूप को देखकर लगा कि लोगों की सेवा करनेवाला शख्स भी कितना असहाय हो जाता है जब उसके अपने घर में कोरोना काल बनकर डँसता है। गोंदिया सरकारी अस्पताल में कार्यरत् कर्मचारी जब इस स्थिति से गुजरा तो उसका दर्द छलक उठा।
‘एक बात बोल रहा हूं, वरिष्ठ लोगों को गलत लग रहा होगा कि औकात से बाहर बात कर रहा है करके, आज मेरे परिवार में मेरी मां का हाल देखो और भाई का, किडनी पेशेंट है वो हार्ट पेशेंट है। मेरे हाथ बंधे हुए हैं कैसा लग रहा है मुझे, मरे जैसा लग रहा है। मेरी वजह से मेरा बाप मरा है। मैं दोषी हूं मैं। कुछ नहीं हो रहा कुछ नहीं हो रहा मेरा, मैं क्या कर लूं, अरोग्य विभाग में लोगों की मदद किया आधी-आधी रात को मैंने। आधी-आधी रात को मैंने लोगों का काम किया पर यहां मेरा बाप मर गया। शर्मा जी क्या बताऊं। मैं हाथ जोड़ रहा हूं एक डाइलिसिस रूम अलग बना लो। बहुत पैसा है गवर्मेंट के पास, रातों रात खड़ा होता है डाइलिसिस रूम। मैं हाथ जोड़ रहा हूं तुम लोगों के कुछ भी दया होगी तो करो मेरे पे… नहीं तो नागपुर भेज देंगे, वो भी मर के आ जाएगा मेरा भाई, क्या कर लूंगा मैं शर्मा जी। एक तिरपुड़े की गलती मेरे परिवार पर भारी पड़ रही है शर्मा जी। हॉस्पिटल का आदमी खिड़की से बात कर रहा है…अंदर भी नहीं आ सकता मैं…’
आंखों से छलकते आंसू, विनंती के स्वर, दोनों हाथ बार-बार जोड़कर प्रार्थना करता पीपीई किट में ढंका वो शख्स गोंदिया सरकारी अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी सचिन लोखंडे था। कोरोना ग्रस्तों की सेवा में उसकी ड्यूटी लगी हुई है। 27 अगस्त को सचिन की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई। इसक दूसरे दिन अर्थात 28 अगस्त को मां और पिता की कोरोना जांच की गई। पिता को भी ज्वर था लेकिन अस्पताल ने उनका स्वैब सैंपल लेकर घर भेज दिया। 30 अगस्त को सचिन के पिता चल बसे। इस बीच उनकी स्वैब टेस्ट रिपोर्ट भी अस्पताल के पास आ गई जिसमें उनके कोरोना ग्रसित होने की पुष्टि हो गई। पिता को खोनेवाले सचिन लोखंडे की मां और भाई की कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। लेकिन सचिन के लिए सबसे बड़ी चिंता अब मां और भाई को बचाने की है। भाई किडनी और हृदय रोग से ग्रसित हैं। पिता को खोकर वो अपने आपको दोषी मान रहा है। उसके बाद मां और भाई के कोरोना संक्रमण ने उसे तोड़ दिया। कल तक दूसरों को ढाढ़स बंधाने वाला रो रहा था। सचिन का ये दर्द भी कहीं छुप जाता यदि इसे कोई मोबाइल में रिकॉर्ड करके वायरल न करता।
कोरोना योद्धाओं का दर्द
गोंदिया का वो दर्द सभी अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों का दर्द है। लोग सेवा के बाद घर जाने के पहले सेल्फ आइसोलेशन में रहते हैं और फिर घर जाते हैं। कई माताएं अपने छोटे बच्चों को छोड़कर कई दिनों से कोरोनाग्रस्तों की सेवा कर रही हैं। कितने ही अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को अपनों से मिले महीनों हो जाते हैं। लेकिन गोंदिया में जो दर्द फूटा है वो चिंतित करता है। इन आंसुओं को पोंछना सरकार और प्रशासन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। जिससे फिर कोई स्वास्थ्यकर्मी न रोए और न ही वो कोरोनाग्रस्तों की सेवा के कारण कोई अपना खोए।
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