कृषि सुधार कानून को लेकर बड़ा हंगामा मचा है। इसलिए हम सबके लिए ये आवश्यक है कि इसे समझा जाए आखिर क्या है नया कृषि सुधार कानून और इससे क्या परिवर्तन आएगा।
गन्ना क्षेत्र में अब तक कारखानों का एकाधिकार था यहां किसान अपने पास के ही कारखानें में गन्ना बेंच सकता था। महाराष्ट्र में गन्ने पर प्रति क्विंटल 3400 रुपए दिये जाते थे जबकि यूपी समेत अन्य राज्यों में 5000-5500 रुपए मिलते थे। यूपी में तो नुकसान का हवाला देकर शक्कर मिलें किसानों को 3 से 6 महीने में भुगतान करती थीं। जो अब खत्म हो जाएगी। यानी फसल उसकी जो कीमत देगा। अब सरकार के इस फैसले से तथाकथित गन्ना सम्राटों का धंधा चौपट हो जाएगा इसलिए वे केंद्र सरकार के विरोध को बल दे रहे हैं।
कपास के विक्रय के मामले में एकाधिकार योजना लागू है। यह योजना 1980 से लागू है जिसके अंतर्गत सरकारी फेडरेशन ही कपास की खरीदी कर सकता है। इस योजना में मुनाफाखोर और सियासी दांव पेंचों के कारण आम किसान कर्ज के बोझ से दब जाता है। किसान आत्महत्याओं में सबसे बड़ा कारण ये माना जाता है। नए कृषि सुधार कानून से यह योजना खत्म हो गई। अब किसान स्वतंत्र है अच्छी कीमत और नकद पर अपना कपास बेचने को। यानी महाराष्ट्र का माल आंध्र प्रदेश में बेचने से अब कोई रोक नहीं सकता और ये सफेद सोना किसानों के घरों में खुशहाली लाएगा।
दूध उत्पाद भी अब तक सहकारी संस्थाओं और मिल्क फेडरेशन के अंतर्गत दबा हुआ है। जिसे अब कृषि सुधार कानून से मुक्ति मिल जाएगी। यानी सफेद क्रांति अब उसे सही मायनों में आबाद करेगी।
कृषि उत्पन्न बाजार समिति किसानों के हितों की रक्षा के लिए खड़ी की गई थी लेकिन ये बन गई किसानों की रक्त पिपासु। यहां बाजारों में किसान अपनी उपज लाकर बेचता है। जिस पर मुनाफाखोरी न हो इसके लिए प्रशासक और नेताओं की नियुक्ति होती है। लेकिन यहां हुआ उसका उल्टा किसान को ही दबाया जाता है। कीमत गिराई जाती है। चंद पैसे वाले बाजार समिति में अपने रसूख के बल पर 10 रुपए किराए पर गाले लेकर उसे व्यापारियों को 20 से 25,000 रुपए के किराए पर दे दिया। यहां उपज बेंचने आनेवाला किसान अपनी माल की ढुलाई, तोलाई, बाजार समिति का टैक्स सब अदा करता है। उसके बाद भी उसके हांथ आता है वह रुपया जो कई बार इतना भी नहीं होता कि उसकी लागत निकल पाए। लेकिन अब कृषि सुधार कानून से किसान स्वतंत्र है अपने उपज को कहीं भी किसी भी राज्य में बेंचने के लिए। उसे अब बाजार समिति के एकाधिकार को नहीं मानना पड़ेगा। यहां से संचालित होनेवाली मुनाफाखोरी और सियासत भी खत्म हो जाएगी। कृ.उ.बा.स के बल पर अपनी काली कमाई को सफेद करनेवालों की दुकान बंद हो जाएगी। अब साढ़े तीन एकड़ की खेती में 110 करोड़ रुपए की फसल नहीं उत्पन्न हो पाएगी। नेताओं और प्रोफेशनल लोगों के उद्देश्य कसान बनो आयकर से बचो पर लगाम। किसानों के लिए काल बने कृ.उ.बा.स के इस कारोबार के बंद होने से इसलिए हंगामा है।
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