देश में कोरोना की तरह ही म्यूकर माइकोसिस भी खतरना साबित होने लगा है। हालांकि खररनाक दोनों ही है लेकिन कोरोना का उपचार अब संभव हो गया है, जबकि म्यूकर के उपचार को लेकर अभी भी असमंजस है। समस्या ये भी है कि इस बीमारी का इलाज काफी महंगा है। इस वजह से इससे ग्रस्त हो जाने पर न सिर्फ रोगी बल्कि पूरा घर-परिवार बुरी तरह प्रभावित होता है।
म्यूकरो का उपचार इतना महंगा है कि इसके लिए बैंक बैलेंस, इंश्योरेंस और अन्य आर्थिक स्रोत के साथ ही घर के गहने वगैरह भी बेचने की नौबत आ सकती है। इसके उपचार में 10-12 सर्जरी तक की जा सकती है और ये सर्जरी तथा इसकी दवाएं इतनी महंगी हैं कि रोगी को अस्पताल का बिल चुकाना भारी पड़ सकता है।
महाराष्ट्र में पहला मरीज
महाराष्ट्र में कोरोना के बाद म्यूकर मायकोसिस का यह पहला मामला था। मरीज का नाम नवीन पॉल (उम्र 46) है। जीएसटी विभाग में कार्यरत पॉल को सितंबर 2020 के तीसरे सप्ताह में कोरोना हुआ था और वे उससे ठीक हो गए थे। लेकिन फिर उनके चेहरे में दर्द होने लगा और नवीन पॉल का दूसरा संघर्ष शुरू हुआ। पॉल को अक्टूबर महीने में इस बीमारी के लक्षण दिखने लगे थे। उस समय विशेषज्ञों को भी ये जानकारी नहीं थी, कि ये बीमारी कोरोना मरीजों को हो सकती है।
उपचार में लग गए महीनों
इस बाीमारी से ठीक होने में महीनों लग गए। शुरुआत में नवीन को इलाज के लिए नागपुर के एक न्यूरोलॉजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां से उन्हें हैदराबाद के एक अस्पताल में भेजा गया। वहां इलाज के बाद उन्हें फिर से नागपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। नागपुर में कुछ सर्जरी के बाद उन्हें मुंबई के एक प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां उनकी तीन सर्जरी हुई।
8 महीने में 13 सर्जरी
पिछले 8 महीने से नवीन पॉल का नागपुर, हैदराबाद और मुंबई के छह बड़े अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इस दौरान साइनस, आंख और जबड़े की 13 सर्जरी की गई। 50 से अधिक स्कैन, एक्स-रे, एमआरआई निकाले गए। मुंबई के अस्पताल का खर्च 19 लाख रुपये है। इससे पहले इलाज पर 45 लाख रुपये खर्च हुए थे। चूंकि वे मुंबई में खर्च नहीं वहन कर सकते थे, इसलिए उन्हें फिर से नागपुर के एक निजी अस्पताल मेडिट्रिना में भर्ती कराया गया। इस निजी अस्पताल का रेलवे के साथ मेडिकल कांट्रैक्ट है। पॉल की पत्नी संगीता साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे में हैं। अस्पताल में नवीन की एक आंख और ऊपरी जबड़ा निकालना पड़ा। 3 महीने के इलाज के बाद मार्च 2021 तक उनमें सुधार हुआ।
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गिरवी रखे जेवर, पीएफ, बचत सब निकाली
इस बीमारी के उपचार के संघर्ष की कहानी सुनाते समय वे अपने आंसू रोक नहीं पाए। बीमारी से नवीन की लड़ाई सिर्फ एक या दो महीने नहीं, बल्कि 8 महीनों तक चली। वे अब तक इसके इलाज पर 1.5 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। इलाज के दौरान पॉल के रोजाना का खर्च लाखों में था। पॉल दंपत्ति ने जितना पैसा बचाया था, वह सब खर्च हो चुका है, चाहे वह पीएफ में हो या बचत का। संगीता ने घर के सारे गहने गिरवी रख दिए। इसके अलावा, रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी आर्थिक मदद की। म्यूकर के इलाज के लिए 1.5 करोड़ रुपये की लागत, आठ महीनों की अवधि और खोई हुई एक आंख के साथ पॉल नए सिरे से कार्यालय में वापस आ गए हैं।
महाराष्ट्र में 6,353 मरीज!
पॉल दंपत्ति ने इलाज के लिए जितना हो सकता था, वह किया, लेकिन हर कोई इस खर्च को वहन नहीं कर सकता । वर्तमान में भारत में इस बीमारी के 28,252 रोगी हैं, जिनमें से 6,353 अकेले महाराष्ट्र में हैं। ऐसे मरीजों का इलाज फिलहाल सरकारी और निजी अस्पतालों में चल रहा है। हालांकि, अगर मरीजों की संख्या बढ़ती रही तो सरकारी अस्पतालों में उनका इलाज संभव नहीं होगा।