नवरात्रि के पावन पर्व का शुभारंभः जानें, शुभ मुहूर्त और माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की विधि

नवरात्रि का पावन पर्व 9 दिनों तक बहुत ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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7 अक्टूबर से नवरात्रि के पावन पर्व का शुभारंभ हो गया है। यह पर्व 9 दिनों तक बहुत ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। कहा जाता है कि उनकी पूजा से जीवन सुखमय बनता है और सभी कष्ट दूर होकर लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

मां शैलपुत्री के बारे में हिंदू धर्म ग्रथों में लिखा गया है कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रुप में उत्पन्न होने के कारण देवी मां का नाम शैलपुत्री रखा गया। उनका जन्म शैल यानी पत्थर से हुआ, इसलि इनकी पूजा से जीवन में पत्थर की तरह सुख और शांति की स्थिरता आती है। माता को वृषारूढ़ा या उमा नाम से भी पुकारा जाता है। उपनिषदों में मां देवी को हेमवती के नाम से वर्णित किया गया है।

शुभ मुहूर्त
घट स्थापना मुहूर्त 7 अक्टूबर, सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट के बीच
जो इस शुभ योग में कलश स्थापित नहीं कर पाएं, वे दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक लाभ का चौघड़िया में और 1 बजकर 42 मिनट से शाम 3 बजकर 9 मिनट तक अमृत के चौघड़िया में कलश पूजन का लाभ ले सकते हैं।

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पूजन विधि
इस दिन सुबह उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान कर लें।
उसके बाद पूजास्थल की गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
मां दुर्गा का जलाभिषेक करें।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित करें।
अब माता को अर्ध्य दें।
मां को अक्षत सिंदूर और लाल पुष्प चढ़ाएं।
फल तथा मिठाई प्रसाद के रुप में चढ़ाएं।
इसके बाद धूप और दीप जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
पाठ पूरा हो जाने पर माता की आरती करें।
माता को भोग लगाएं।
मां को बर्फी का भोग लगा सकते हैं।
केवल सात्विक सामग्रियों का ही भोग लगाएं।
मां को सफेद फूल या सफेद वस्त्र अर्पित करें।

घटस्थापन पूजा सामग्री
मिट्टी का कलश
सप्तधान्य यानी सात प्रकार के अनाज
पवित्र स्थान की मिट्टी
गंगाजल
कलावा यानी मौली
आम या अशोक पत्र
छिलके/ जटावाला
नारियल
सुपारी अक्षत
पुष्प और पुष्पमाला
लाल कपड़ा
मिठाई
सिंदूर
दूर्वा

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