भाईदूज का त्योहार हर साल कार्तिक के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ये पावन पर्व भाई-बहन के परस्पर प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। महाराष्ट्र में इसे भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है। इस दिन भाई-बहन एक दूसरे से विशेष रुप से मिलते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना के कारण यह त्योहार भी ऑनलाइन ज्यादा मनाया गया।
भाई दूज के संबंध में प्रचलित कथा
सूर्य भगवान की पत्नी संज्ञा देवी की दो संतानें हुईं- पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। एक बार संज्ञा देवी अपने पति सूर्य की तेज किरणों को बर्दाश्त नहीं कर पाई और उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर चली गईं। उसी छाया में ताप्ती नदी एवं शनि देव का जन्म हुआ। छाया का व्यवहार यम और यमुना से विमाता जैसा था। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी अलग यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई को यमपुरी में पापियों को दंडित करने का कार्य करते देख गोलोक चली आई। यम एवं यमुना काफी समय तक अलग-अलग रहे। यमुना ने कई बार अपने भाई यम को अपने घर आने का निमंत्रण दिया, परंतु यम आ न सका। काफी समय बीत जाने के बाद वह एक दिन यमुना के यहां आया।
यम अपनी बहन यमी( यमुना) के घर भाईदूज के दिन मिलने आया था। उसके आने पर यमी बहुत खुश हुई और उसका खूब सेवा सत्कार किया। खुश होकर यम ने बहन यमी को वरदान मांगने को कहा। यमी ने काफी अनुरोध करने पर वरदान मांगा कि जिस प्रकार आज के दिन उनका प्यारा भाई यम उनके घर आया है। उसी प्रकार दुनिया का हर भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाई दूज की प्रथा चली आ रही है।
इसके आलावा यह भी कहा जाता है कि यमी ने अपने भाई से यह वर मांगा कि जो लोग आज के दिन यमुना नगरी में विश्राम घाट पर स्नान कर अपनी बहन के घर भोजन करें, वे तुम्हारे लोक में न जाएं। यम ने यमुना को ‘यथास्तु’ कहा। तभी से भाई-दूज त्योहार मनाने की प्रथा शुरू हुई।
मनाने की विधिः
इस अवसर पर बहनें अपने भाई के आसन पर चावल के घोल बनाकर चौक बनाती हैं। इस पर भाई को बैठाती हैं और उसके हाथों की पूजा करती हैं। पूजा में सबसे पहले हथेली पर चावल का घोल लगाती है। उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल-पान, सुपारी और पैसे रखकर धीरे-धीरे हाथों पर पानी छोड़ते हुए मंत्र बोलती है- ‘ गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को। सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा युमना नीर बहे, मेरे भाई आप बढ़ें।’
इसके बाद उसके हाथों में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा कराती हैं, तिलक लगाती हैं। यमराज के नाम एक चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज के बाहर रखती हैं।
रक्षा बंधन
भाई दूज के आलावा भारत में रक्षा बंधन के त्योहार को भी भाई-बहन के त्योहार के रुप मे मनाया जाता है। रक्षा बंधन में बहन भाई की कलाई पर धागे से बना रक्षा बंधन बांधती है और तिलक लगाने के बाद मुंह मीठा कराती है। इस दिन भाई अपनी बहन को आजीवन रक्षा करने का बचन देता है।
कब मनाया जाता है रक्षा बंधन?
हिंदू श्रावण मास( जुलाई-अगस्त) में पूर्णिमा के दिन मनाया जानेवाला यह त्योहार भाई-बहन के प्रति प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। राखी या रक्षा बंधन का व्यापक महत्व है और इसे देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा और हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधे जाने लगा है।
ऐतिहासिक महत्व
रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा इस प्रकार है :
राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
मुगल सम्राटों ने भी माना था महत्व
इतिहास में राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं। मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।
सिकंदर की पत्नी ने राजा पुरू को बांधी थी राखी
कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
- महाभारत में राखी
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। - शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।