बिहार में पहली बार किसान काला गेहूं की खेती कर रहे हैं। इसकी फसल करीब 150 दिनों में तैयार हो जाती है। भागलपुर जिले के कहलगांव, शाहकुंड, गोराडीह आदि प्रखंड़ों के आधा दर्जन किसान इसकी खेती कर रहे हैं। इसके लिए राजकोट से 50 किलो गेहूं मंगवाया गया था। बीज का दाम डेढ़ सौ रुपए किलो था। 22 नवंबर को खेत में बीज बोया गया है। साधारण गेहूं की अपेक्षा यह ज्यादा लंबा और पतला होता है। स्वास्थ्य के लिए लाभदायक और देश-दुनिया में इसकी काफी मांग होने के कारण इससे यहां के किसानों की किस्मत और सेहत दोनो संवरने की बात कही जा रही है।
आटे में शुगर जीरो प्रतिशत
बाजार में काला गेहूं का आटा काफी कम उपलब्ध है। इसकी कीमत सौ रुपए प्रति किलो के आसपास है। अगर भागलपुर में काला गेहूं का अच्छा पैदावार होता है तो इसकी कीमत और कम हो सकती है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसके आटे में शुगर जीरो प्रतिशत है। इस वजह से यह मधुमेह के रोगियों के साथ ही अन्य लोगों के लिए भी काफी लाभदायक हो सकता है।
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प्रायोगिक तौर पर खेती
आत्मा के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह ने बताया कि भागलपुर में पहली बार प्रायोगिक तौर पर कुछ किसानों ने इसकी खेती की है। अगर इसका पैदावार अच्छा रहेगा तो भविष्य में इसकी खेती अन्य किसान भी करेंगे। उनका कहना है कि काले गेहूं का विदेशो में काफी डिमांड है, इसलिए किसानों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
काला होने का कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि काला गेहूं एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट से भरपूर होते हैं। इसी वजह से यह काला होता है। एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंटल भी है। इस वजह से इसे लाभदायक माना जाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए काला गेहूं काफी फायदेमंद है। इन कारणों से किसान इसकी खेती करने के लिए आकर्षित हो रहे हैं।