बुन्देलखंड क्षेत्र में फाल्गुन माह का आगाज होते ही गांवों की चौपालों पर फाग गीतों के बोल गूंजने लगते थे और फाग की चौपालों का सिलसिला होली जलने के एक सप्ताह तक लगातार चलता था, लेकिन आधुनिकता की दौर में युवाओं का अब इससे मोह भंग हो चला है। इससे फाग गायन की कला अब विलुप्त होने के मुहाने पर आ गई है। कुछ गांवों में फाग गाने की परम्परा भी औपचारिकता तक ही सीमित हो गई है।
बुन्देलखंड में किसी जमाने में होली के मौके पर फाग गायकी से सजने वाली चौपालों में लोगों की भारी भीड़ भी जुटती थी। मगर अब युवाओं का इससे मोह भंग होता जा रहा है। इससे गांवों के बुजुर्गों में फाग कला को लेकर मलाल है। यहां ज्यादातर गांवों में होली के त्योहार पर नई पीढ़ी के लोग कैसेट के जरिए ही पुराने गानों का लुत्फ उठाते हैं। हमीरपुर जिले के विदोखर, कुंडौरा एवं इंगोहटा, सुरौली सहित तमाम गांवों में फाग गायकी की कला अब होली त्योहार पर औपचारिकता निभाने तक सीमित हो गई है।
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कभी ईश्वरी फागों की मचती थी धूम
बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, ललितपुर, झांसी, जालौन, चित्रकूट और बांदा के अलावा पड़ोसी मध्य प्रदेश के तमाम ग्रामों में किसी जमाने में ईश्वरी फागों की धूम मचती थी। इसके गाने की भी अनूठी कला थी जिससे सुनने के लिए पूरा गांव फाग की चौपालों पर उमड़ता था। होली जलने से एक सप्ताह पहले ही गांव-गांव में फाग की महफिलें भी सजती थीं, लेकिन कुछ दशकों से अब कुछ ही ग्रामों में फाग गायन होता है। बंजारी कुशवाहा (85) और देवरती कुशवाहा (70) सहित तमाम बुजुर्गों ने बताया कि होली जलने से पहले ही फागों का गायन शुरू होता था। होलिका दहन के समय में भी फाग गायक अपनी-अपनी टोली लेकर मौके पर पहुंचते थे। इससे होलिका दहन में खासी रौनक दिखाई देती थी, लेकिन अब तो ज्यादातर गांवों की चौपालें ही सूनी पड़ी रहती हैं।
गांवों के बुजुर्गों के कंधे बची परम्परा
कलौलीजार गांव के पूर्व प्रधान बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी और सिद्धगोपाल अवस्थी ने बताया कि नई पीढ़ी के लोगों की फाग गायन की परम्परा के प्रति अब रुचि नहीं रह गई है। इससे अधिकांश गांवों में फाग की चौपालें होली जैसे त्यौहार पर सूनी रहती हैं। बुन्देलखंड के ग्रामीण इलाकों में होली के मौके पर ईश्वरी फागें सुकर गांव के लोग मस्ती से ओतप्रोत हो जाते थे, लेकिन अब इनकी जगह फिल्मी गानों ने ले ली है। बुजुर्गों का कहना है कि होली पर्व पर कई गांव ऐसे हैं जहां लगातार आठ दिनों तक फाग गायकी के आयोजन चौपालों में होते थे। अलग-अलग स्वर और लय के साथ इस पुरानी परम्परा को अब कुछ ही गांवों में बुजुर्ग लोग ही निभाते हैं। अब तो गांवों में शराब के नशे में लोग होली के मौके पर फूहड़ डांस करते हैं।