जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भले ही हमें प्रत्यक्ष रुप से दिखाई नहीं पड़ रहा हो, लेकिन इसके खतरे हर जगह और हर क्षेत्र में बरकरार हैं। हाल ही में यूनिसेफ की द क्लाइमेट क्राइसिस एज अ चाइल्ड राइट्स क्राइसिस रिपोर्ट में कई खतरों को लेकर चेतावनी दी है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर पड़ रहा है। भारत दक्षिण एशिया के उन चार देशो में शामिल है, जहां खतरे ज्यादा हैं।
हर आयु के लोग प्रभावित
पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण संकट हर आयु के लोगों के लिए बड़ा खतरा बन गया है। कई शारीरिक और मानसिक बीमारियां बदलते पर्यावरण के कारण पैदा हो रही हैं। पर्यावरण में बदलाव के कारण जीवनशैली और बुनियादी जरुरतों से जुड़े खतरे भी बढ़ रहे हैं। बाढ़, सूखा, वायु प्रदूषण तथा जल संकट जैसी समस्याएं जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं। पर्यावरण के संकट के कारण सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर भी कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं। इनका असर बच्चों के वर्तमान और भावी जीवन पर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।
ऐसे समझें
इसे इस तरह समझा जा सकता है कि हमारे यहां जब बाढ़ आता है तो बच्चों का स्कूल जाना मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही हवा और पानी प्रदूषित हो जाते हैं और उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।
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बच्चा ग्रहण करता है 15 सिगरेट के बराबर धुआं
प्रदूषण को रोकने के लिए काम कर रही एयर एशिया संस्था के शोध में पता चला है कि दिल्ली में एक नवजात बच्चा भी रोजाना परोक्ष रुप से 15 सिगरेट का धुआं ग्रहण करता है। बच्चे किसी भी देश के भविष्य होते हैं। इस स्थिति में पर्यावरण संकट के चलते उपजे भावी पीढ़ी से जुड़े खतरे वैश्विक समुदाय के लिए चिंता का कारण होने चाहिए।
कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त
यह जोखिम इतना बड़ा है कि प्रदूषण से जहरीली होती हवा के कारण बच्चे समय से पहले पैदा हो जा रहे हैं। भारत में दूषित जल बच्चों को कई तरह के संक्रामक रोगों का शिकार बना रहा है। उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी उनके रोग ग्रस्त होने का एक बड़ा कारण है। बच्चों में बढ़ रही कैंसर की बीमारी के लिए हवा में मौजूद हारिकारक तत्व प्रमुख रुप से जिम्मेदार हैं।