उत्तराखंड : इस कारण दम तोड़ रहा है पहाड़ों का कुटीर उद्योग

उत्तराखंड का ऊन उद्योग मात्र बुजुर्गों तक सीमित रह गया है।

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पहाड़ों में रोजगार और जीविका के सीमित संसाधन हैं। यही वजह रही कि पहाड़ के बाशिंदें पालतू जानवरों भेड़-बकरी, गाय-भैंस से ही अपना और अपने परिवार का भरणपोषण करते आ रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में जीविका के अलग-अलग संसाधन हैं। जैसे पशुपालन, खेती, बागवानी और एक है भेड़ पालन।

भेड़ पालन मूलत: हिमालायी क्षेत्रों में होता है। इसमें प्रदेश का एक प्रमुख जिला उत्तरकाशी है। इसके मोरी क्षेत्र और पुरोला का सरबडियार, नौगांव का सरनौल, बसराली, गीठपट्टी, भटवाड़ी के हर्षिल घाटी में जाड़ जनजातीय समुदाय का बगोरी गांव भेड़ पालन और ऊनी वस्त्रों के लिए देश और विदेश में जाना जाता रहा है। यहां के ग्रामीण ऊन का लघु उद्योग कर सदियों से अपने परिवारों का भरण पोषण करते आ रहे हैं।

बुजुर्गों तक सीमित रह गया है ऊन उद्योग
अब यहां का ऊन उद्योग मात्र बुजुर्गों तक सीमित रह गया है। राज्य में भेड़ पालन और ऊन उद्योग में उत्तरकाशी के भेड़ पालक आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। सरकारी अनदेखी और ऊन खरीद के नए मानकों के चलते भेड़ पालकों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में कई भेड़ पालक इसे तौबा करने लगे हैं। हालात ये हो गई है कि ऊन का कुटीर उद्योग केवल दरियां और कालीन बनाने तक ही रह गया है।

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ऊन का कुटीर उद्योग सिमटने की कगार पर
-चारागाहों और कृषि भूमि की कमी के चलते भेड़ पालक पहले ही कठिनाई में जी रहे थे। ऐसे में नए मानकों के बाद मुसीबत और बढ़ गई है। जहां कुछ साल पहले ऊन और ऊनी वस्त्र सरकारी विभाग खरीद रहे थे तो भेड़ पालकों को उसका उचित मूल्य मिल जाता था लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते अब ऊन का कुटीर उद्योग सिमटने की कगार पर है।

-बागोरी गांव के भेड़ पालक राजेन्द्र सिंह नेगी और भगवान सिंह बताते हैं कि भेड़पालन हमारा रोजगार का एक मात्र साधन है। यह मेहनत का काम है। पहले ऊन और घी का एक ही रेट था, लेकिन जब से सरकार ने ऊन खरीदना बंद किया है तब से रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। सरकार से गुहार लगायई है कि हमारी ऊन सरकार खरीदे ताकि हमको हमारा उचित मेहनताना मिल सके।

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