उनकी ताली की आवाज सुनकर हम आसानी से समझ जाते हैं, कि ‘वो’ आ रहे हैं। तब हमारे चेहरे पर अचानक ही एक मुस्कान आ जाती है और थोड़ी ही देर में वो ताली बजाते हुए हमारे सामने उपस्थित हो जाते हैं। उनके हाथ हमारे चेहरे और सिर पर फिरने लगते हैं और उनके मुंह से निकलता है, ‘ऐ राजू, मुन्ना दे, अम्मा दे।’ और तब अपनी मर्जी से हम उनके हाथ में कुछ पैसे थमा देते हैं। फिर वे भी संतोष के साथ आगे बढ़त जाते हैं। जब वे ताली बजाते हैं, तो वह सिर्फ ताली नहीं होती, वह उनके जीवन की असहाय पीड़ा होती है। लेकिन 2020 के लॉकडाउन के बाद जहां इन किन्नरों की दशा थोड़ी सुधरने लगी थी, वहीं एक बार फिर कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप ने उन्हें पहले से भी बदतर हालत में पहुंचा दिया है। सवाल यह कि अब वे कहां जाकर ताली बजाएं और उनसे मिले पैसों से अपना पेट भरें?
किन्नरों के लिए सबसे मुश्किल समय
बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखेत हुए 14 से 30 अप्रैल तक मुंबई सहित राज्य भर में धारा 144 लागू की गई है। इसलिए, आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी वर्ग के लोगों को बाहर जाने पर रोक दी गई है। इस स्थिति में सवाल यह है कि किन्नर अपने जीवन कैसे चलाएं, अपनेा पेट कैसे भरें, जिनका जीवन ताली बजाने और लोगों से पैसे मांगने पर ही चलता है।
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लॉकडाउन की घोषणा सुनकर रोने लगे किन्नर
मुंबई के भांडुप सोनापुर में 50 से अधिक किन्नर रहते हैं। सरकार के लॉकडाउन की घोषणा के बाद उनकी आंखों में आंसू आ गए। शादी समारोह हो, नई दुकानें खोलना हो या बच्चों के जन्म का अवसर हो। इनकी मंडली आशीर्वाद देने के लिए पहुंच जाती है। लेकिन लॉकडाउन के कारण, शादियों को बड़े पैमाने पर आयोजित नहीं किया जाता है और नई दुकानें भी नहीं खोली जा रही हैं। इसके साथ ही वे लॉकडाउन के कारण कहीं जा भी नहीं सकते हैं। इस हाल में वे पूछ रहे हैं कि आखिर अब हम ताली बजाने कहां जाएं?
कई राज्यों में की जाती है मदद
देश के कई राज्यों में इन किन्नरों को आजीविका के लिए प्रति माह 2,000 रुपए दिया जाता है। अगर महाराष्ट्र सरकार भी इन्हें मदद करती तो कम से कम इनका पेट तो भरता।
सोनापुर में किन्नरों का ये हाल
सोनापुर में सेक्स वर्कर्स और किन्नरों के लिए काम करने वाली संस्था सेवामृत फाउंडेशन की प्रिया जाधव ने बताया कि जब मैंने इस बारे में उनसे जिक्र किया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनकी आंखों के आंसू बहुत कुछ कह रहे थे। प्रिया ने कहा, “यह पहली बार है, जब मैंने किन्नरों को इस तरह रोते हुए देखा है।” उन्होंने कहा कि अगर ये सामान्य इंसान होते तो कहीं भी कुछ सामान बेचकर कमा लेते, लेकिन इनसे तो कोई कुछ खरीदेगा भी नहीं। इसलिए वर्तमान में इनके सामने भीख मांगने के सिवाय और कोई चारा नहीं है।
सरकार से मांगी मदद
प्रिया जाधव ने कहा कि लॉकडाउन में सेवामृत फाउंडेशन के माध्यम से उन्हे ऐसी वस्तुओं को प्रदान किया जाएगा ताकि वे घर में खाना बना सकें और खा सकें। लेकिन सरकार को भी इन पर ध्यान देने की जरूरत है। जाधव ने कहा, “मुझे लगता है कि अगर हम उन्हें अन्य राज्यों की तरह 2,000 से 5,000 रुपये की मासिक वित्तीय सहायता दें, तो समाज का यह उपेक्षित वर्ग ढंग से जी सकेगा।