रंग-उमंग और भाईचारा का पर्व होली प्राचीन काल से होलिका दहन के अगले दिन मनाया जाता है लेकिन इस वर्ष होलिका दहन के अगले दिन होली नहीं मनेगी। पंचांग के अनुसार चैत्र माह के पहली तिथि को होली मनाई जाती है, जबकि होली के पूर्व रात फाल्गुन पूर्णिमा की शुभ वेला में होलिका दहन किया जाता है। इस वर्ष पूर्णिमा 17 मार्च को है, लेकिन चैत्र का पहला सूर्योदय 19 मार्च को होने के कारण होली 19 मार्च को मनाई जाएगी।
ज्योतिष अनुसंधान केंद्र गढ़पुरा (बेगूसराय) के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक होली के सही तारीख को लेकर संशय बना दिया गया है। इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में होली दो दिन मनाया गया है। उन्होंने बताया कि देश-दुनिया के सनातन धर्मावलंबी कोई भी पर्व-त्यौहार तिथि, काल और कई प्रकार की शास्त्रीय गणना पर आधारित पंचांग के अनुसार मनाते हैं।
यह है कारण
मिथिला पंचांग के अनुसार इस वर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा गुरुवार 17 फरवरी को है, लेकिन पूर्णिमा तिथि का प्रवेश दोपहर एक बजकर 13 मिनट होगा तथा रात में एक बजकर नौ मिनट के बाद होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। शुक्रवार 18 मार्च को दोपहर एक बजकर तीन मिनट तक पूर्णिमा है। कोई पर्व-त्यौहार सूर्य उदय तिथि के आधार पर होता है और 18 मार्च रविवार का सूर्योदय पूर्णिमा तिथि में होने के कारण उस दिन होली नहीं मनाई जाएगी। शनिवार 19 मार्च का सूर्योदय चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पहली तिथि को होगा तथा उस दिन दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक माह की प्रथम तिथि है, जिसके कारण उसी दिन 19 मार्च को होली मनाया जाएगा।
क्या कहता है बनारसी पंचांग?
बनारसी पंचांग में भी शनिवार 19 मार्च को ही होली स्पष्ट किया गया है, हालांकि उसमें तिथि प्रवेश के समय में कुछ अंतर है। बनारसी पंचांग के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का आरंभ गुरुवार 17 मार्च को दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर होगा। पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 18 मार्च को दोपहर 12 बजकर 53 मिनट पर समाप्त हो जाएगी, इसके बाद अगले दिन होली मनाया जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
पंडित आशुतोष झा ने बताया कि धर्म ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रदोष काल में भद्रा हो तथा निशीथ काल से पहले भद्रा समाप्त हो जाती है, उसके बाद होलिका दहन निशीथ काल से पहले करना चाहिए। 17 मार्च को प्रदोष काल में भद्रा है तथा मध्य रात्रि तक भद्रा का साया बना हुआ है। इसके साथ ही अगले दिन प्रदोष काल से पहले पूर्णिमा समाप्त हो जा रही है। इसलिए तिथि के अनुसार 17 मार्च की रात एक बजकर नौ मिनट के तुरंत बाद होलिका दहन करना शुभ है तथा 18 मार्च को रंग-गुलाल नहीं खेलकर, 19 मार्च को प्रातः काल अपने इष्ट देव की पूजा-अर्चना कर होली मनाया जाना उचित है।