कोरोना महामारी पूरे विश्व में तबाही लेकर आई, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी देखने को मिले। उन्हीं में से एक है कि इस दौरान देश के नागरिकों ने सेविंग शुरू कर दी और लॉकडाउन के दौरान उन्होंने 200 अरब डॉलर (1,467,586.83 रुपए ) की अतिरिक्त बचत कर ली। यूबीएस की एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। भारत की घरेलू बचत 2014 और मध्य 2019 के बीच लगातार कम होती रही लेकिन कोरोना काल में 200 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त बचत हो गई। बताया जा रहा है कि यह लॉकडाउन के दौरान मंदी में लोगों की बचत करने की प्रवृत्ति में हुई वृद्धि के कारण हुई।
यूबीएस की रिपोर्ट में दावा
यूबीएस का कहना है कि इसका उपयोग देश की अर्थव्यवस्था के सामान्य होने और उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास लौटाने में किया जा सकता है। यूबीएस का कहना है कि जब कोरोना काल में संकट का समय आया तो भारतीय नागरिक सतर्क हो गए और उन्होंने अपना ध्यान बचत पर केंद्रित कर दिया। अधिकांश भारतीयों ने अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ने के कारण अपने खर्चे में कटौती कर दी।
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ये भी एक बड़ा कारण
बचत का एक कारण यह भी है कि लॉकडाउन के दौरान सभी दुकान, मॉल, शॉपिंग सेंटर के साथ ही रेस्टॉरेंट और होटल बंद थे। इस हालत में लोगों के खर्च पर अपने आप लगाम लग गया। यहां तक कि उनके घर से निकलने पर भी पाबंदी लगी थी। इस वजह से वाहनों को निकालने तक की जरुरत नहीं पड़ी और बड़े पैमाने पर पेट्रोल-डीजल की भी बचत हुई।
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बड़े घरों की बढ़ी मांग
लॉकडाउन का असर सिर्फ बचत पर ही नहीं पड़ा है बल्कि अपार्टमेंट के आकार पर भी पड़ा है। देश के सात बड़े शहरों में पिछले वर्ष शुरू किए गए अपार्टमेंट के आकार 10 प्रतिशत बढ़ गए हैं। महामारी के बाद बड़े फ्लैटों की मांग बढ़ी है। इसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन स्टडी के कारण लोगों की पसंद बदली है और अब वे बड़े घरों को पसंद करने लगे हैं। 2016 के बाद से औसत फ्लैटों का आकार कम होता जा रहा था लेकिन अब बड़े फ्लैटों की मांग बढ़ रही है।