लोटा से पानी पीना भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से चली आ रही है। ग्लास या गिलास विदेशों से आया है। अभी भी भारतीय संस्कृति के जानकार यह मानते हैं कि, लोटा और गिलास में से गिलास में पानी पीना सबसे उत्तम है। गिलास के बारे में कहा जाता है कि, गिलास यूरोप के पुर्तगाल से आया था। यह उस काल की बात है जब पुर्तगाली भारत में घुसे।
लोटे का बारे में कहा जाता है कि, लोटा एकरेखीय नहीं होता, वागभट्टके अनुसार, जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका त्याग कीजिये, वो काम के नहीं हैं इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नहीं माना जाता।
लोटे का पानी लाभकारी
एक कहावत है कि जहां का पानी पियो वैसे ही गुण आते हैं। इसका कारण है कि, पानी का अपना कोई गुण नहीं हैं, पानी को जिसमें मिला दो उसी के गुण पानी में आ जाते हैं। जैसे-दही में मिला दो तो छाँछ बन गई, दूध में मिलाया तो दूध का गुण पानी के साथ आ गया।
इसी प्रकार लोटे में रखे जल में लोटे का गुण आएगा, अब लोटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा। इसे वैज्ञानिक तरीके से समझाएं तो प्रत्येक गोल वस्तु की विशेषता होती है कि, वह सरफेस टेंशन कम रहता है। इसका कारण है कि लोटा गिलास के मुकाबले कम सरफेस एरिया कवर करता है। इसके कारण सरफेस टेंशन भी कम होगा और स्वास्थ्य की दृष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली वस्तु ही लाभदायक कही जाती है।
ऐसा मानना है कि, अधिक सरफेस टेंशन वाली वस्तु में रखे द्रव या खाद्य का सेवन तकलीफ दे सकती है क्योंकि उससे शरीर पर एक्स्ट्रा प्रेशर आता है।
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