महाराष्ट्र के महारथी! ऐसे बन गई आपकी दवाई उनकी गरीबी का इलाज

महाराष्ट्र के वन क्षेत्र में शाहपुर एक आदर्श के रूप में खड़ा हो रहा है। यहां रहनेवाले कातकरी समुदाय के वनवासी अपनी एकता और प्रयत्न से गरीबी पर मात कर रहे हैं।

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पश्चिमी घाट की पर्वतमालाओं से घिरा शाहपुर महाराष्ट्र के ठाणे जिले की सबसे बड़ी तहसील है। यहां वनवासी कातकरी समुदाय की जनसंख्या बहुतायत है। ये यहां का सबसे पुराना जनजातीय समुदाय है। वर्षों से उनका मुख्य उद्योग वनों से जलावन की लकड़ियां और फल इकट्ठा करके बेचना। इस जंगल की एक उपज बाहरी दुनिया के लिए वनौषधि बनी तो भयंकर गरीबी में रहनेवाले इस समुदाय की गरीबी का भी इलाज हो गया।

यह कार्य शुरू किया इस समुदाय के सुनील पवारन और उनके मित्रों ने। उन्होंने वनधन योजना के अंतर्गत अपरिष्कृत (कच्ची) गिलोय की बिक्री करने के लिए वीडीवीके नामक एक संस्था की शुरुआत की। वर्तमान में इसके 300 सदस्य हैं। वीडीवीके के सदस्य अब यहां 35 से अधिक उत्पादों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को इकट्ठा करके इसे बाजार के लिए तैयार करते हैं।

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गिलोय सहायक लकड़ी
शाहपुर के जंगल क्षेत्र में औषधि के गुणों से भरपूर गिलोय गरीबी से मुक्ति में सहारे की लकड़ी बन गई। यहां के वनवासी गिलोय की लताओं से गिलोय काटकर उसे सुखाते हैं। उसकी सपाई करते हैं इसक बाद उस शाहपुर कार्यशाला में लाकर उसे पीसा जाता है। इसके बाद थैलियों में बंद करके उस पर ठप्पा लगाकर उसे आयुर्वेदिक औषधि निर्माताओं के पास भेज दिया जाता है।

लॉकडाउन में भी कमाई
जब दुनियां में लॉकडाउन चल रहा था इस बीच वीडीवीके समूह ने 12,40,000/- रूपये मूल्य का गिलोय चूर्ण और 6,10,000 रुपये मूल्य की सूखी गिलोय की बिक्री की है।
इस समूह को अब करोड़ो का ऑर्डर मिलना शुरू हो गया है। जिसमें 450 टन गिलोय शीर्ष आयुर्वेदिक निर्माता कंपनियों को देना है। इसकी ऐवज में इस समूह को एक करोड़ सतावन लाख की आवक होगी।

जहां एक ओर वैश्विक महामारी कोविड-19 और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण वीडीवीके का काम रुक गया पर इसके चलते संस्था के कर्मियों के उत्साह और मनोबल में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने इस संकट के दुष्प्रभावों को कम से कम रखने के लिए इस दौरान कठोर परिश्रम भी किया। मार्च 2020 से आधे जून 2020 की अवधि में वीडीवीके ने स्थानीय आदिवासियों से 34,000 किलोग्राम से अधिक मात्रा में गिलोय खरीदी। फिर लॉकडाउन समाप्त होने और धीरे-धीरे स्थिति के सामान्य होने के बाद वीडीवीके अब तेजी से काम को बढ़ा रही है और ई-प्लेटफॉर्म पर भी अपने उत्पादों को बिक्री के लिए उपलब्ध करवा रही है।

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वनौषधि उत्पादन ने दिखाई राह
एक ओर जहां अपरिष्कृत (कच्ची) और प्रसंस्कृत गिलोय अभी भी वीडीवीके के कारोबार का मुख्य आधार है वहीं अब यह संस्था सफ़ेद मूसली, जामुन, बहेड़ा, वायविडंग, मोरिंगा, नीम, आंवला और संतरे के छिलकों का चूर्ण जैसे पदार्थों के क्षेत्र में भी अपने कारोबार को बढ़ा रही है। इस सफलता ने इस समुदाय के हजारों लोगों को प्रेरित किया है और अब वे ऐसे ही कई क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं। अभी तक 12,000 लाभार्थियों वाली 39 वीडीवीके संस्थाओं को ट्राइफेड ने अतिरिक्त रूप से अपनी मंजूरी दी है I

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