गुजरात की लुप्तप्राय कला-कारीगरी को ओडीओपी देगा जीवनदान

योजनांतर्गत कॉमन फैसिलिटी सेंटर, कौशलवर्धन, प्रशिक्षण, ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स, एम्पोरियम्स, मेलों एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से बाजार के साथ कनेक्टिविटी, ब्रांडिंग व नवीन सहकारी मंडलियां बनाकर उत्पाद तथा उसकी गुणवत्ता बढ़ा कर उसे देश और विश्वभर में विख्यात करने के प्रयास किए जाएंगे।

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नेशनल हैंडलूम दिवस पर विशेष
केन्द्र सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) पहल गुजरात की विस्मृत हो रही विरासती तथा वंशानुगत कला-कारीगरी के लिए जीवनदान बनेगी। राज्य सरकार ने ओडीओपी के अंतर्गत राज्य के प्रत्येक जिले की एक या उससे अधिक महत्वपूर्ण वस्तुओं को विश्व स्तर पर पहुंचाने के लिए तैयारी कर ली है, जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जा सकने वाली तथा लुप्त हो रही विरासती कलाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास आरंभ किए गए हैं।

सात अगस्त को नेशनल हैंडलूम दिवस मनाया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने ओडीओपी के अंतर्गत हस्तकला-हथकरघा क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए आयोजन किया है। ओडीओपी पहल का उद्देश्य देश के सभी जिलों में संतुलित विकास को प्रोत्साहन देकर देश तथा देश के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के केन्द्र सरकार के विजन को साकार करना है। इस योजनांतर्गत हर जिले से एक विशिष्ट उत्पाद का चयन कर, उसकी ब्रांडिंग व प्रमोशन कर देश एवं दुनियाभर में विख्यात बनाने के प्रयास हो रहे हैं, जिसमें हस्तकला-हथकरघा सहित विभिन्न क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।

इस योजनांतर्गत गुजरात में अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े कारीगरों को बाजार की मांग के अनुरूप प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, मार्केट के साथ जुड़ाव, उत्पादन में विविधता के लिए सहायता, मूल्यवर्धन, गुणवत्ता निरीक्षण की सुविधाएं तथा प्रभावशाली ब्रांड प्रमोशन की सहायता दी जाती है।

उल्लेखनीय है कि राज्य के उत्पादों की घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 2023-24 से राज्य में वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) सहायता योजना लागू की गई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने इस ओडीओपी पहल के लिए 58 करोड़ रुपये के अनुदान को मंजूरी दी है।

गुजरात में इस योजना के क्रियान्वयन के लिए कुटीर एवं ग्रामोद्योग सचिव तथा आयुक्त को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है। गुजरात राज्य हथकरघा-हस्तकला विकास निगम (जीएसएचएचडीसी) द्वारा इस योजना का क्रियान्वयन शुरू कर दिया गया है।

जीएसएचएचडीसी के प्रबंध निदेशक ललित नारायण सिंह सांदु ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि ओडीओपी के अंतर्गत निश्चित उत्पादों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिससे बाजार में उसका मूल्यवर्धन किया जा सके। उदाहरण के रूप में, भरूच का ‘सुजनी’ हैंडलूम, जामनगर की ‘बांधणी’ (बंधेज) तथा पाटण के पटोळा (पटोला)। इन उत्पादों के लिए गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लस (जीईएम) पर ऑनबोर्डिंग ड्राइव भी शुरू की गई है।

उन्होंने कहा कि इस अभियान को अधिक परिणामोन्मुखी बनाने के लिए विशेषज्ञों की सहायता ली जा रही है। जैसे कि आणंद जिले के खंभात के अकीक पत्थरों की कारीगरी तथा भरूच जिले की सुजनी कला के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआईएफटी) ने कार्य शिविर आयोजित कर सहयोग दिया है।

भरूच की ‘सुजनी’ कला होगी पुनर्जीवित
ओडीओपी के अंतर्गत राज्य के 33 जिलों की एक, दो या तीन महत्वपूर्ण कला-कारीगरी का चयन किया गया है। ऐसी वस्तुओं में सबसे महत्वपूर्ण है भरूच की ‘सुजनी’, जो रजाई बनाने की अति प्राचीन कला है और लगभग लुप्तप्राय होने को है, परंतु अब ओडीओपी के तहत भरूच की इस ‘सुजनी’ को शामिल किया गया है।

‘सुजनी’ कला : गौरवशाली अतीत व उज्ज्वल भविष्य
‘सुजनी’ कला का इतिहास देखें, तो यह कला भरूच में 1815 में एक मुस्लिम परिवार द्वारा विकसित की गई। धीरे-धीरे यह कला भरूच की पहचान बन गई, परंतु आधुनिकता की आंधी में यह कला लुप्तप्राय स्थिति में थी और केवल एक ही परिवार तक सीमित बन चुकी थी। यद्यपि अब ओडीओपी के अंतर्गत ‘सुजनी’ कला को पुनर्जीवित किया जाएगा और हाल में भरूच में लगभग 20 युवा ‘सुजनी’ कला का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

खंभात के अकीक के पत्थर को मिलेगी वैश्विक पहचान
‘सुजनी’ कला की भांति ही ओडीओपी के अंतर्गत खंभात के अकीक पत्थर तथा उससे बनने वाले उत्पादों को वैश्विक पहचान देने के प्रयास जारी हैं। खंभात में सोने-चांदी के नहीं, बल्कि अकीक के पत्थरों से बनने वाले आभूषण विश्व प्रसिद्ध हैं, परंतु इन पत्थरों को तराशने वाले कारीगरों की स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के चलते यह कला-कारीगरी सिमटने लगी है। ओडीओपी के अंतर्गत आणंद जिले के महत्वपूर्ण उत्पादन में अकीक की कला-कारीगरी को शामिल किया गया है, जिससे इस कला-कारीगरी को नया बाजार तथा नया जीवन मिलेगा।

कला-कारीगरी के लिए कैसे वरदान बनेगा ओडीओपी?
राज्य सरकार ने ओडीओपी उत्पादों के इको-सिस्टम को अधिक सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग को उत्तरदायित्व सौंपा है, जिसके संदर्भ में ओडीओपी से जुड़े विभिन्न विभागों/कार्यालयों को एक साथ लाया जाएगा। कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग ने अपनी नई कुटीर एवं ग्रामोद्योग नीति में ओडीओपी योजना को शामिल किया है। इस योजनांतर्गत कॉमन फैसिलिटी सेंटर, कौशलवर्धन, प्रशिक्षण, ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स, एम्पोरियम्स, मेलों एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से बाजार के साथ कनेक्टिविटी, ब्रांडिंग व नवीन सहकारी मंडलियां बनाकर उत्पाद तथा उसकी गुणवत्ता बढ़ा कर उसे देश और विश्वभर में विख्यात करने के प्रयास किए जाएंगे।

राज्य के प्रत्येक जिले से महत्वपूर्ण कला-कारीगरी का चयन
ओडीओपी योजना के तहत जिले के सांस्कृतिक या ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्पादों या हस्तकला का चयन किया जाता है तथा सघन प्रयासों द्वारा उसके विकास व प्रमोशन कार्य किया जा रहा है। इस योजनांतर्गत राज्य के 21 जिलों से हस्तकला-हथकरघा क्षेत्र के 25 से अधिक उत्पादों का चयन किया गया है, जिनमें गामठी ब्लॉक प्रिंट तथा मातानी पचेडी जैसी परम्परागत हस्तकला शामिल हैं।

‘वोकल फॉर लोकल’ तथा ‘गरवी-गुर्जरी’ ब्रांड के साथ बिजनेस डेवलपमेंट प्लान
जिलों में हुए बेस लाइन के सर्वेक्षण के आधार पर सम्बद्ध उत्पाद के लिए बिजनेस डेवलपमेंट प्लान तैयार किया जाएगा। परियोजना मूल्यांकन समिति इस प्लान की समीक्षा कर उसे स्वीकृति देगी। इसके बाद स्वीकृत प्लान के अनुसार योजना का सम्बद्ध जिले में क्रियान्वयन किया जाएगा। ‘वोकल फॉर लोकल’ के उद्देश्य से ओडीओपी के अंतर्गत ‘गरवी-गुर्जरी’ ब्रांड के रूप में प्रसिद्ध हो, इसके लिए व्यवस्था की जाएगी। इस योजनांतर्गत स्टार्टअप्स को भी सहायता देय होगी।

क्या कहते हैं ‘सुजनी’ कलाकार ?
भरूच के फाटा तालाब क्षेत्र में रहने वाले 56 वर्षीय सुजनीवाला मुजक्कीर शाह कहते हैं कि हमारी पांच पीढ़ियों से हम सुजनी कला से जुड़े हुए हैं। वे कहते हैं कि हमारे यहां 30 से 35 कारीगर कार्य करते थे, परंतु प्रतिस्पर्धा तथा अन्य फैक्टर्स के कारण इस कला के अस्तित्व पर संकट आया। सुजनी कारीगरों की भावी पीढ़ी तैयार करने के लिए प्रशिक्षण-सह-उत्पादन केन्द्र स्थापित किया गया है। सुजनी कला को मिल रहे प्रोत्साहन के बारे में वे कहते हैं कि सरकार के सहयोग से भरूच की सुजनी कला को जीआई टैग दिलाने की भी प्रक्रिया शुरू की गई है।

भरूच में रेवा सुजनी सेंटर में हाल में प्रशिक्षण ले रही आदिवासी छात्रा पिनल वसावा कहती हैं, “मैं कक्षा 10 के बाद सिलाई कार्य सीखती थी और तभी मैंने सुजनी कला प्रशिक्षण के बारे में जाना और इसे सीखना शुरू किया।” वे कहती हैं, “मुझे ट्रेनिंग सेंटर में सुजनी कला में डिजाइन तथा कलर कॉम्बिनेशन की प्रक्रिया में आनंद आता है।”

पिछले चार महीनों से सुजनी कला सीख रहीं तुषाबेन सोलंकी कहती हैं, “मेरे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए मैं कमाई के अवसर खोज रही थी। मझे सुजनी कला के बारे में पता चला और मैं इससे जुड़ गई।” वे कहती हैं, “मैं कॉटेज पॉलिसी के अंतर्गत सुजनी का अपना उत्पादन करना चाहती हूं और लुप्त हो रही सुजनी कला को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में योगदान देना चाहती हूं।”

गुजरात में ओडीओपी के अंतर्गत चयनित कला-कारीगरी
1. अहमदाबाद – टेराकोटा तथा मातानी पछेडी/सौदागरी ब्लॉक प्रिंट, 2. अमरेली – मोती कार्य, 3. आणंद – अकीक पत्थर, 4. बनासकांठा – सफ एम्ब्रॉइडरी/एब्लिक, 5. भरूच – सुजनी रजाई बुनाई कला, 6. भावनगर – मोती कार्य, 7. छोटा उदेपुर – पिठोरा पेंटिंग, 8. देवभूमि द्वारका – खंभालिया शॉल, 9. गांधीनगर – वुड वर्क/ब्लॉक मेकिंग, 10. साबरकांठा – टेराकोटा, 11. जामनगर – बांधणी (बंधेज), 12. जूनागढ़ – मोती कार्य, 13. कच्छ – हैंडीक्राफ़्ट वस्तुएं, 14. मोरबी – मिट्टी कार्य, 15. नर्मदा – बांस उत्पाद, 16. नवसारी – वारली चित्रकला, 17. पाटण – डबल इकत बुनाई पटोला, 18. राजकोट – सिंगल इकत बुनाई, 19. सूरत – साडेली कला, 20. सुरेन्द्रनगर – सिंगल इकत बुनाई पटोला, 21. तापी – बांस उत्पाद।

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