देश के सर्वोच्च न्यायालय में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखनेवाले प्रावधानों को रद्द करने के अनुरोध को लेकर दायर याचिका पर न्यायालय ने कुछ राज्यों से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि इन प्रावधानों की वजह से देश के लाखों लोगों के सामने भीख मांगकर अपराध करने या फिर भूखा मरने के आलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आरएस रेड्डी की बेंच ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से इस याचिका पर जवाब मांगा है।
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन
भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटाने के अनुरोध वाली याचिका में कहा गया है कि भीख मांगने को अपराध बनाने से संबंधित धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। बेंच ने मेरठ निवासी विशाल पाठक की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि जारी किए गए नोटिसों पर छह सप्ताह में जवाब मांगा गया है। अधिवक्ता एचके चतुर्वेदी ने विशाल पाठक की इस याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2018 के उस फैसले की जिक्र किया है, जिसमें देश की राजधानी दिल्ली में भीख मांगना अपराध नहीं माना गया है। याचिका में कहा गया है कि बंबई शिक्षावृत्ति अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जिनमे भीख मांगने को अपराध माना गया है, संवैधानिक रुप से नहीं टिक सकता है।
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ये है दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला
भिखारियों से जुड़े बंबई भीख रोकथाम कानून के अगस्त 2018 से पहले तक राजधानी दिल्ली में भीख मांगना अपराध था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया था। न्यायालय ने दिल्ली में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से अलग कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि कोई अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगता, बल्कि मजबूरी में भीख मांगता है, क्योंकि उसके पास जीवित रहनेवाला कोई और साधन नहीं होता। न्यायालय ने कहा था कि दिल्ली सरकार सभी को रोजगार, खाना और बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकी है, ऐसे में भीख मांगना अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
देश में कुल 4,13,670 भिखारी
2011 की जनगणना के अनुसार देश में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है। उनमें 2,21244 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं हैं। सबसे ज्यादा भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं। वहां उनकी संख्या 81,244 है।